बिहार की सियासी हवा इस बार कुछ बदली-बदली सी लग रही है। तीन चरणों में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के बाद अब एग्जिट पोल के आंकड़े सामने आ चुके हैं, जिन्होंने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। हर चैनल और एजेंसी के सर्वे में कुछ अलग तस्वीरें दिख रही हैं, लेकिन एक बात तय है—लड़ाई कांटे की है। पटना से लेकर दिल्ली तक नेताओं की धड़कनें तेज़ हैं।
NDA, जिसमें बीजेपी और जेडीयू शामिल हैं, को इस बार कड़ी टक्कर दे रहा है महागठबंधन, जिसका नेतृत्व आरजेडी और कांग्रेस कर रही हैं। वहीं, पहली बार तीसरे मोर्चे के रूप में उभरे छोटे दलों ने भी समीकरणों को दिलचस्प बना दिया है। अब सवाल यही है—क्या नीतीश कुमार फिर से सत्ता में लौटेंगे या तेजस्वी यादव को जनता मौका देगी?
NDA की बढ़त पर संशय, महागठबंधन ने मारी वापसी?
कुछ एग्जिट पोल्स के मुताबिक, NDA को 243 सीटों में से 110 से 125 सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि महागठबंधन 100 से 115 सीटों के बीच पहुंच सकता है। वहीं, अन्य दलों और निर्दलीयों के खाते में 10 से 15 सीटें जाती दिख रही हैं। हालांकि, कुछ एजेंसियों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में इस बार जातीय समीकरणों और बेरोजगारी के मुद्दे ने नीतीश सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
पटना, गया, और भागलपुर जैसे शहरी इलाकों में NDA को हल्की बढ़त मिल रही है, लेकिन सीमांचल और मगध क्षेत्र में महागठबंधन का प्रदर्शन शानदार बताया जा रहा है। इससे साफ है कि बिहार की जनता ने इस बार मतदान जाति से ज़्यादा स्थानीय मुद्दों पर किया है।
युवाओं और बेरोजगारी का मुद्दा बना ‘गेम चेंजर’
एग्जिट पोल के विश्लेषण से एक बात साफ निकलकर सामने आई है कि युवा मतदाताओं ने इस बार निर्णायक भूमिका निभाई है। तेजस्वी यादव की ‘नौकरी और परिवर्तन’ की थीम ने युवाओं में गहरी पैठ बनाई। वहीं, नीतीश कुमार ने अपने विकास मॉडल और ‘सात निश्चय’ योजना के दम पर जनता से विश्वास मांगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार का यह चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि सोच में बदलाव का भी प्रतीक है। बेरोजगारी, शिक्षा, और महंगाई जैसे मुद्दों ने जातीय राजनीति की दीवारों में दरार डाल दी है। यही वजह है कि एग्जिट पोल में कोई भी दल स्पष्ट बहुमत के करीब नहीं दिख रहा।
महिला वोटर बनीं चुनाव की ‘किंगमेकर’?
दिलचस्प बात यह है कि इस बार महिला मतदाताओं की भागीदारी ने सभी समीकरणों को बदल दिया। बिहार के 38 जिलों में महिला वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा। एग्जिट पोल में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि महिलाओं का झुकाव शिक्षा, सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के आधार पर हुआ है।
नीतीश कुमार की ‘मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना’ और आरजेडी के ‘रोजगार व सम्मान’ वादों के बीच महिलाओं ने किसे प्राथमिकता दी—यह 14 नवंबर को आने वाले वास्तविक नतीजे ही तय करेंगे। लेकिन इतना तय है कि महिला वोटर इस बार सियासत की धुरी बन चुकी हैं।
14 नवंबर को खुलेगा बिहार का ‘सियासी रहस्य’
एग्जिट पोल ने भले ही एक मिश्रित तस्वीर दिखाई हो, लेकिन बिहार की असली कहानी अभी बाकी है। हर दल अपने पक्ष में जीत का दावा कर रहा है। बीजेपी के नेता इसे विकास की जीत बता रहे हैं, जबकि आरजेडी इसे बदलाव की लहर कह रही है।
चुनाव आयोग के अनुसार, वोटों की गिनती 14 नवंबर को होगी, और उसी दिन तय होगा कि बिहार की सत्ता की चाबी किसके हाथ जाएगी। क्या नीतीश कुमार इतिहास रचकर 10 बार मुख्यमंत्री बनेंगे, या तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद यादव की विरासत को सत्ता में बदल पाएंगे? suspense बरकरार है।
