Allahabad High Court ने एक ऐसे केस में अहम फैसला सुनाया है, जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी है। एक महिला ने आत्महत्या कर ली थी और उसके परिवार वालों ने आरोप लगाया कि दहेज और बच्चा न होने के चलते सास और ननद ने उसे लगातार प्रताड़ित किया और आत्महत्या के लिए उकसाया। इस आरोप के आधार पर निचली अदालत ने सास को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत दोषी भी ठहराया था। लेकिन हाई कोर्ट ने इस मामले में नया मोड़ लाते हुए उसे बरी कर दिया।
फैसले में कहा गया— “आत्महत्या एक बेहद जटिल मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। केवल आरोप या पारिवारिक मतभेद को आत्महत्या के लिए उकसाने का ठोस आधार नहीं माना जा सकता। जब तक आरोपी द्वारा कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उकसाने की कार्रवाई साबित न हो, तब तक अपराध नहीं बनता।”
धारा 306 और 107 पर कोर्ट का जोर — ‘सिर्फ आरोप काफी नहीं’
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में दोषी ठहराने के लिए दो बातें सिद्ध होना अनिवार्य हैं — पहला, व्यक्ति की आत्महत्या और दूसरा, किसी अन्य व्यक्ति का ऐसा कृत्य जिससे वह आत्महत्या के लिए प्रेरित हो। कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 107 का हवाला देते हुए कहा कि ‘उकसाने’ को साबित करने के लिए प्रत्यक्ष सबूत होना चाहिए।
जज ने कहा — “मृतक के पिता के बयानों में कई विरोधाभास हैं। उन्होंने पहले यह कहा था कि उनकी बेटी अपने ससुराल में सामान्य और सौहार्दपूर्ण माहौल में रह रही थी और वह बच्चा न होने के कारण अवसाद में थी। अभियोजन पक्ष कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया कि सास ने किसी तरह से मृतका को आत्महत्या के लिए प्रेरित या मजबूर किया।”
‘दुर्भाग्यपूर्ण मौत लेकिन ठोस साक्ष्य का अभाव’ — कोर्ट
कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि एक युवा महिला की मौत निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, लेकिन कानून सिर्फ भावनाओं पर नहीं चलता। अगर किसी पर अपराध सिद्ध करना है तो उसके लिए ठोस, पुष्ट और निर्विवाद सबूत होने जरूरी हैं। केवल तनाव, ताने या पारिवारिक विवाद को आत्महत्या के लिए उकसाने का आधार नहीं बनाया जा सकता।
फैसले में कहा गया — “यह प्रथम दृष्टया साबित नहीं होता कि अपीलकर्ता ने किसी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया, सहायता की या साजिश रची। ऐसे में उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”
यह फैसला भविष्य में कई मामलों के लिए मिसाल बन सकता है, जहां पारिवारिक तनाव और आत्महत्या को लेकर उकसाने के आरोप लगते हैं। कोर्ट का यह रुख दिखाता है कि न्याय केवल आरोपों पर नहीं, बल्कि सबूतों पर टिका होता है।
Read more-एक फैक्ट्री से शुरू हुआ था दिवाली बोनस का ‘खजाना’… जिसने बदल दी करोड़ों कर्मचारियों की किस्मत!
