लेह, लद्दाख में जलवायु कार्यकर्ता और नवाचार के लिए चर्चित सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने देशभर में हलचल मचा दी है। शुक्रवार, 26 सितंबर को लेह पुलिस द्वारा उन्हें हिरासत में लिए जाने के बाद सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में आक्रोश की लहर दौड़ गई। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए इसे “तानाशाही का चरम” बताया। उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर कहा, “रावण का भी अंत हुआ था। कंस का भी अंत हुआ था। हिटलर और मुसोलिनी का भी अंत हुआ था। और आज उन सब लोगों से लोग नफ़रत करते हैं।” केजरीवाल का इशारा सीधा केंद्र सरकार की ओर था, जिसे उन्होंने जनता की आवाज़ को दबाने वाला बताया।
“देश के लिए काम करने वालों को सज़ा, राजनीति चमकाने वालों को मंच!”
अरविंद केजरीवाल ने अपने अगले पोस्ट में और भी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “सोनम वांगचुक, जो व्यक्ति देश के बारे में सोचता है, शिक्षा के लिए दिन-रात काम करता है, और पर्यावरण के लिए नए-नए आविष्कार करता है, उसे आज केंद्र सरकार घटिया राजनीति के तहत प्रताड़ित कर रही है।” केजरीवाल ने सवाल उठाया कि क्या इस तरह का व्यवहार उन लोगों के साथ किया जाएगा जो देश को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं? वांगचुक की गिरफ़्तारी के पीछे का असली कारण क्या है, ये अभी भी स्पष्ट नहीं हो पाया है, लेकिन इस कार्रवाई से यह संकेत जरूर गया है कि सरकार उन आवाज़ों से असहज है जो जनहित में सवाल उठाती हैं।
क्या यह लोकतंत्र है या डर का शासन?
सोनम वांगचुक की पहचान सिर्फ एक सामाजिक कार्यकर्ता की नहीं है, बल्कि उन्होंने लेह और लद्दाख में शिक्षा और पर्यावरण को लेकर जो काम किया है, वो वैश्विक स्तर पर सराहा गया है। उनके अभियानों से सैकड़ों युवाओं को नई दिशा मिली है। ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सत्ताधारी वर्ग जनहित में काम करने वालों को कैसे हाशिए पर धकेलने की कोशिश करता है। सवाल यह है कि क्या अब देश में बोलने की आज़ादी केवल किताबों में रह गई है? और अगर देश की आवाज़ उठाने वाले चुप करा दिए जाएंगे, तो असली तानाशाही की परिभाषा क्या होगी?
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