उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट बैठक में ऐसे फैसले सामने आए, जिनकी किसी को उम्मीद भी नहीं थी। महीनों से किरायेदारी से जुड़े कानून में सुधार की चर्चा चल रही थी, लेकिन सरकार ने जिस पैमाने पर बदलाव किए हैं, उसने सभी को चौंका दिया है। राज्य सरकार ने घोषणा की है कि अब 10 वर्ष तक के किरायानामा विलेख पर स्टाम्प शुल्क और रजिस्ट्रेशन फीस को निर्धारित सीमा में सीमित कर दिया जाएगा। यह कदम सिर्फ शुल्क कम करने का निर्णय नहीं, बल्कि उन वर्षों पुराने विवादों को समाप्त करने की दिशा में बड़ा प्रयास है, जिनमें मौखिक किरायेदारी और अनरजिस्टर्ड एग्रीमेंट मुख्य कारण रहे हैं। सरकार का स्पष्ट लक्ष्य है—किरायेदारी व्यवस्था को औपचारिक, सुरक्षित और पूरी तरह पारदर्शी बनाना चाहिए।
किरायेदारी शुल्क में भारी कटौती
नई व्यवस्था के तहत वार्षिक किराए के आधार पर किरायेदारी विलेखों के लिए तीन अलग-अलग श्रेणियां तय की गई हैं। हर श्रेणी में शुल्क की अधिकतम सीमा निर्धारित कर दी गई है, ताकि किरायेदार और मकान मालिक दोनों बिना किसी आर्थिक बोझ के औपचारिक रेंट एग्रीमेंट तैयार करा सकें। पहले जहां लोग भारी स्टाम्प शुल्क के कारण एग्रीमेंट को रजिस्टर्ड कराने से बचते थे, वहीं अब शुल्क इतना नियंत्रित होगा कि लिखित किरायानामा बनवाना सामान्य प्रक्रिया बन जाएगा। सरकार का दावा है कि इस परिवर्तन से जमीन-मकान से जुड़ी पारदर्शिता बढ़ेगी और विभागीय कार्रवाई या बाद में होने वाली स्टाम्प शुल्क की वसूली जैसी जटिलताएं भी समाप्त होंगी। साथ ही टोल और खनन से जुड़े पट्टों को इस नीति से बाहर रखा गया है, ताकि राजस्व संरचना प्रभावित न हो।
राजस्व विभाग में भी बड़ा चेंज, पहली बार चैनमैन को मिलेगा प्रमोशन का रास्ता
किरायेदारी सुधारों के साथ-साथ कैबिनेट ने लेखपाल सेवा नियमों में भी ऐतिहासिक परिवर्तन किया है। नई नियमावली के अनुसार अब कुल लेखपाल पदों में से दो प्रतिशत पद योग्य चैनमैन को प्रमोशन के आधार पर दिए जा सकेंगे। अभी तक चैनमैन के लिए यह पद हासिल करना लगभग असंभव था क्योंकि सीधी भर्ती के बाहर उनके लिए कोई अवसर उपलब्ध नहीं था। सरकार का मानना है कि फील्ड स्तर पर वर्षों से काम कर रहे अनुभवी कार्मिकों को ऊपर आने का मौका मिलना चाहिए, जिससे राजस्व व्यवस्था अधिक कुशल बन सके। यह फैसला उन कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत है, जो लंबे समय से पदोन्नति की उम्मीद लगाए बैठे थे।
इन दोनों बड़े निर्णयों से स्पष्ट है कि सरकार प्रशासनिक ढांचे को न केवल सरल बनाने की ओर बढ़ रही है, बल्कि उन सभी कमजोरियों को भी खत्म कर रही है जो नागरिकों और सरकारी विभागों के बीच अविश्वास की दीवार बनाती थीं।
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