अयोध्या एक बार फिर ऐतिहासिक दीपोत्सव के लिए तैयार हो रही है। 2025 में सरयू नदी के किनारे 26 लाख दीयों को एक साथ जलाने का लक्ष्य रखा गया है। यह न सिर्फ़ भारत बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा दीप प्रज्वलन कार्यक्रम बनने जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि यह आयोजन अयोध्या को वैश्विक धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित करेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इसकी निगरानी कर रहे हैं, और तैयारियों को लेकर प्रशासनिक अमला चौकस है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की टीम को भी आमंत्रित किया गया है।
पर्यावरण पर असर या आस्था की जीत?
हालांकि, इस आयोजन को लेकर हर कोई समान रूप से उत्साहित नहीं है। पर्यावरण विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इतने बड़े पैमाने पर तेल और दीयों के उपयोग पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि लाखों लीटर तेल जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ सकता है और दीयों का अवशेष सरयू में जाकर जल प्रदूषण को भी जन्म दे सकता है। विपक्षी दलों ने इसे “वोट बटोरने की रणनीति” करार दिया है और सवाल उठाया है कि क्या करोड़ों रुपये खर्च करना तर्कसंगत है जब राज्य में स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्र अब भी संघर्ष कर रहे हैं।
जनता में उत्साह चरम पर, लेकिन ज़मीन पर क्या होगा सच?
विवादों और आलोचनाओं के बीच, अयोध्या के स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं में उत्साह कम नहीं है। शहर के होटल, धर्मशालाएं और यात्रा सुविधाएं पहले से ही फुल हो चुकी हैं। व्यापारी वर्ग इस आयोजन को अपने व्यवसाय के लिए सुनहरा मौका मान रहे हैं। पूरे शहर में रोशनी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और रामायण से जुड़े प्रदर्शनियों की योजना है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है: क्या वाकई 26 लाख दीये एक साथ जलेंगे? या फिर यह एक और प्रतीकात्मक आयोजन बनकर रह जाएगा, जो तस्वीरों में भव्य दिखे लेकिन सच्चाई में उससे दूर हो?
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