भारत के लिए वनडे और टी20 इंटरनेशनल में खेलने वाले परवेज़ रसूल ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा कर दी है। 36 वर्षीय इस खिलाड़ी ने अपने लंबे घरेलू करियर और सीमित अंतरराष्ट्रीय अनुभव के बाद इस फैसले से क्रिकेट प्रेमियों को चौंका दिया है।
जम्मू-कश्मीर के बिजबेहरा से आने वाले रसूल राज्य से भारत की राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने वाले पहले क्रिकेटर बने थे। उनका यह सफर हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा रहा है। उन्होंने बीसीसीआई को अपना रिटायरमेंट लेटर भेज दिया है और इस फैसले को पूरी तरह निजी बताया।
सिर्फ एक वनडे और टी20, लेकिन छाप छोड़ने वाला करियर
परवेज़ रसूल का अंतरराष्ट्रीय करियर भले ही आंकड़ों में छोटा रहा — उन्होंने भारत के लिए सिर्फ 1 वनडे और 1 T20I मैच खेला — लेकिन उनका घरेलू प्रदर्शन बेहद प्रभावशाली रहा है।
उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 5,648 रन बनाए और 352 विकेट झटके। वे उन गिने-चुने खिलाड़ियों में शामिल हैं जिन्हें दो बार रणजी ट्रॉफी में ‘लाला अमरनाथ सर्वश्रेष्ठ ऑलराउंडर पुरस्कार’ से नवाजा गया, वर्ष 2013-14 और 2017-18 में।
2012-13 सीज़न में उनका प्रदर्शन शानदार रहा — 594 रन और 33 विकेट — और यही उनके आईपीएल और राष्ट्रीय टीम में चयन की वजह बनी।
आईपीएल से लेकर रणजी तक चमकता रहा रसूल का सितारा
रसूल ने आईपीएल में भी दो बड़ी टीमों — पुणे वॉरियर्स इंडिया और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (RCB) — का प्रतिनिधित्व किया। वे टीम के साथियों और कोचों द्वारा बेहद मेहनती और अनुशासित खिलाड़ी के रूप में देखे जाते थे।
हालांकि उन्हें आईपीएल में ज्यादा मौके नहीं मिले, लेकिन जब भी उन्होंने खेला, उन्होंने अपने प्रदर्शन से टीम को मजबूती दी। उनके ऑफ स्पिन गेंदबाजी और निचले क्रम में उपयोगी बल्लेबाजी की वजह से वे एक ऑलराउंड पैकेज माने जाते थे।
“गर्व है कि मैं J&K क्रिकेट की कहानी का हिस्सा बना” – परवेज़ रसूल
संन्यास की घोषणा करते हुए रसूल ने मीडिया से बात करते हुए कहा “मैं अपने करियर और सभी अनुभवों के लिए आभार प्रकट करता हूं जो क्रिकेट ने मुझे दिए। जम्मू-कश्मीर की क्रिकेट को ऊंचाई देने में जो छोटा योगदान रहा, उस पर गर्व है। अब समय है युवाओं को आगे बढ़ने का मौका देने का।”
उनके इस बयान में साफ झलकता है कि वे न केवल एक खिलाड़ी के रूप में, बल्कि एक मार्गदर्शक और रोल मॉडल के रूप में भी युवाओं के लिए प्रेरणा बनना चाहते हैं।
विरासत और भविष्य
परवेज़ रसूल का करियर हमें यह सिखाता है कि सिर्फ अंतरराष्ट्रीय आंकड़े ही किसी खिलाड़ी की महानता का मापदंड नहीं होते। उन्होंने एक ऐसे राज्य से निकलकर भारत का प्रतिनिधित्व किया, जहां क्रिकेट को लेकर सुविधाएं सीमित थीं।
आज जम्मू-कश्मीर में कई युवा क्रिकेटर उनके नक्शे कदम पर चलकर आगे बढ़ रहे हैं। उम्मीद है कि रसूल आगे जाकर कोचिंग या प्रशासनिक भूमिका में आकर अपने अनुभव से राज्य की क्रिकेट को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएंगे।
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