रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा शुरू होने से ठीक पहले लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर बड़ा आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार विपक्षी नेताओं को अंतरराष्ट्रीय डेलिगेशन या विदेशी नेताओं से मिलने की मंजूरी नहीं देती। राहुल गांधी का कहना था कि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को सीमित किया जा रहा है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर केवल सरकार की आवाज को आगे बढ़ाया जा रहा है। उनके मुताबिक, विदेशों से आने वाले डेलिगेशन अक्सर विपक्ष से मिलने की इच्छा जताते हैं, लेकिन सरकार उन्हें ऐसा करने से रोकती है। इससे न केवल विपक्ष की भूमिका कमज़ोर होती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संवाद में विविधता भी खत्म हो जाती है।
राहुल गांधी ने यह मुद्दा उस समय उठाया जब पुतिन भारत आ रहे थे और द्विपक्षीय वार्ता को लेकर पूरे देश और दुनिया में हलचल थी। उनका आरोप था कि पिछले कुछ वर्षों में विदेशी नेताओं से विपक्ष की मुलाकात लगभग नाममात्र रह गई है, जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में संवाद जरूरी है, और केंद्र सरकार को विपक्ष की स्वतंत्र भूमिका में बाधा नहीं डालनी चाहिए।
सरकार ने दिया जवाब
राहुल गांधी के आरोपों पर केंद्र सरकार की ओर से स्पष्टीकरण देते हुए आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि सरकार किसी भी विदेशी नेता या डेलिगेशन को यह निर्देश नहीं देती कि वे किन लोगों से मिलें या न मिलें। सूत्रों के अनुसार, भारत आने वाले विदेशी नेता अपने कार्यक्रम, मीटिंग्स और औपचारिक मुलाकातों का पूरा खाका खुद तय करते हैं। इसके बाद विदेश मंत्रालय उसी के अनुसार उनके कार्यक्रमों का समन्वय करता है।
सरकारी सूत्रों ने स्पष्ट किया कि भारत की विदेश नीति पूरी तरह से स्थापित प्रोटोकॉल पर आधारित है और किसी भी तरह की राजनीतिक दखलअंदाजी इसमें शामिल नहीं होती। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार विदेशी नेता केवल सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात करना पसंद करते हैं, जबकि कभी-कभी वे विपक्ष से भी मिलने का निर्णय लेते हैं। यह निर्णय पूरी तरह से उनकी अपनी प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। सरकार केवल सुरक्षा, समय-सारिणी और लॉजिस्टिक से जुड़े मामलों का समन्वय करती है।
भारत दौरे पर है राष्ट्रपति पुतिन
व्लादिमीर पुतिन की यह यात्रा भारत–रूस संबंधों के लिहाज से बेहद अहम मानी जा रही है। दोनों देशों के बीच रक्षा, ऊर्जा, व्यापार, और वैश्विक मुद्दों पर गहरी साझेदारी है। ऐसे में पुतिन की भारत यात्रा का राजनीतिक और रणनीतिक महत्व काफी बड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच होने वाली बातचीत में कई महत्वपूर्ण फैसले होने की उम्मीद है, जिनका असर लंबे समय तक भारत–रूस रिश्तों पर पड़ेगा।
इस बीच, राजनीतिक आरोप–प्रत्यारोप का दौर भी तेज हो गया है। विपक्ष सरकार पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सीमित करने का आरोप लगा रहा है, जबकि सरकार का कहना है कि विपक्ष बिना आधार के मुद्दों को तूल दे रहा है। पुतिन की यात्रा ने इस बहस को और तेज कर दिया है कि क्या भारत की विदेश नीति में विपक्ष की भूमिका को पर्याप्त जगह मिलती है या नहीं। हालांकि केंद्र का कहना है कि विदेशी नेताओं से मिलने का निर्णय पूरी तरह उनके हाथ में होता है, इसलिए विपक्ष का आरोप तथ्यों पर आधारित नहीं है।
विशेषज्ञों की राय और भविष्य की राजनीति पर प्रभाव
एक मुलाकात तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष की भूमिका को लेकर एक बड़ी बहस का हिस्सा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब बड़े वैश्विक नेता भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में आते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि वे सरकार के साथ-साथ विपक्ष की राय भी जानना चाहें। हालांकि यह भी सच है कि कई विदेशी नेताओं का कार्यक्रम बेहद सीमित होता है और वे समय की कमी के कारण कम लोगों से मिल पाते हैं।
कुछ विशेषज्ञ इसे राजनीतिक संदेश देने का प्रयास मानते हैं—विपक्ष यह दिखाना चाहता है कि सरकार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सिर्फ अपनी छवि को आगे बढ़ाना चाहती है, जबकि सरकार यह साबित करने में लगी है कि वह किसी भी विदेशी मुलाकात में हस्तक्षेप नहीं करती। आने वाले दिनों में पुतिन की यात्रा से जुड़े फैसले, और विपक्ष की प्रतिक्रियाएं, इस बहस को और गहरा कर सकती हैं। यह मुद्दा संसद से लेकर मीडिया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक चर्चा में रह सकता है।
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