उत्तर प्रदेश के एटा जिले के जलेसर थाना क्षेत्र से एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने हर दिल को पिघला दिया। एक बुजुर्ग दंपति, जिन्हें उनके अपने बेटे और बहू ने घर से निकाल दिया था, चार दिन तक भूखे-प्यासे सड़कों पर भटकते रहे। कभी मंदिर की सीढ़ियों पर सोते, कभी पेड़ के नीचे आसरा ढूंढते। उम्र की इस ढलती दोपहर में उनके पास ना खाना था, ना छत, बस आंखों में उम्मीद की एक हल्की लौ कि शायद कोई मदद करेगा।
लेकिन चार दिन गुजर गए — किसी ने पानी तक नहीं पूछा। यह दर्द तब खत्म हुआ जब थाना प्रभारी अमित कुमार की नजर सड़क किनारे बैठे उस थके हुए जोड़े पर पड़ी। उनकी हालत देखकर इंसानियत भी सिहर उठी।
फरिश्ता बनी पुलिस — अमित कुमार की इंसानियत ने जीता दिल
थाना प्रभारी अमित कुमार ने जैसे ही बुजुर्ग दंपति को देखा, तुरंत अपनी गाड़ी रुकवाई। उन्होंने पास जाकर हाल पूछा, तो बुजुर्गों ने रुंधे गले से कहा — “बेटे-बहू ने घर से निकाल दिया है, चार दिन से भूखे हैं।” यह सुनते ही अमित कुमार ने अपने स्टाफ को बुलाकर तुरंत उनके लिए खाना और पानी मंगवाया।
खाना खाते समय उस जोड़े की आंखों से बहते आंसू मानो पूरे समाज से सवाल कर रहे थे — “क्या यही हमारे संस्कार हैं?”
बुजुर्ग दंपति को बेटे-बहू ने घर से निकाल दिया 4 दिन से भूखे और लाचार होकर सड़क पर भटक रहे थे।
तभी जलेसर थाना प्रभारी अमित कुमार की नज़र उन पर पड़ी। उन्होंने तुरंत दोनों को खाना खिलाया, बैठाया और उनका सहारा बने।
जहाँ अपना छोड़ जाए… वहाँ पुलिस ने अपना फ़र्ज़ निभाया यह घटना… pic.twitter.com/d2M9bMPWNw— Shagufta khan (@Digital_khan01) November 7, 2025
इसके बाद थाना प्रभारी ने सोशल वेलफेयर विभाग और स्थानीय प्रशासन से संपर्क किया और दंपति के रहने व देखभाल की व्यवस्था कराई। उन्होंने न सिर्फ मदद की, बल्कि खुद जाकर सुनिश्चित किया कि बुजुर्गों को कोई परेशानी न हो।
यह वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो लोगों ने अमित कुमार को ‘जलेसर का फरिश्ता’ कहना शुरू कर दिया।
जहां अपनों ने छोड़ा, वहां पुलिस ने दिया अपनापन
सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो ने लाखों दिलों को झकझोर दिया। लोग कहने लगे कि जहां खून के रिश्तों ने मुंह मोड़ लिया, वहां वर्दी ने इंसानियत का धर्म निभाया। कई यूजर्स ने लिखा, “अगर हर पुलिसवाला ऐसा हो जाए, तो समाज में कोई बेसहारा नहीं रहेगा।”
वहीं प्रशासन की तरफ से भी सराहना मिली। चर्चा है कि थाना प्रभारी अमित कुमार को इस मानवीय कदम के लिए सम्मानित किया जा सकता है।
यह कहानी सिर्फ एटा की नहीं, बल्कि हर उस घर की गूंज है जहां बुजुर्ग मां-बाप अपने बच्चों की बेरुखी झेल रहे हैं। यह घटना हमें याद दिलाती है कि कभी-कभी फरिश्ते इंसानों के रूप में ही मिल जाते हैं। बस पहचानने की देर होती है।
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