Friday, December 5, 2025
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लेटकर रील्स देखने की आदत बन सकती है आपकी सेहत के लिए खतरनाक! डॉक्टरों ने बताया कितना गंभीर है इसका असर

बिस्तर पर लेटकर रील्स देखना आपकी सेहत पर कितना असर डाल सकता है? जानें गर्दन और आंखों से लेकर मानसिक स्वास्थ्य तक इसके गंभीर प्रभाव और बचाव के उपाय।

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आज की डिजिटल दुनिया में हर व्यक्ति का हाथ मोबाइल फोन पर है। सुबह उठते ही सोशल मीडिया स्क्रॉल करना, काम के बीच में छोटे ब्रेक में रील्स देखना और रात को सोने से पहले बिस्तर पर लेटना – यह सब आदत बन चुकी है। शुरुआत में यह केवल मनोरंजन का जरिया लगता है, लेकिन धीरे-धीरे यह आदत आपकी सेहत पर गंभीर असर डालने लगती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बिस्तर पर लेटकर लगातार रील्स देखना सिर्फ आंखों की थकान ही नहीं बल्कि गर्दन, रीढ़ और मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है।

इस डिजिटल आदत का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि इसे अक्सर लोग हल्के में लेते हैं। “एक मिनट की रील” के बहाने लोग घंटों मोबाइल स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं। परिणामस्वरूप मांसपेशियों पर दबाव बढ़ता है और शरीर धीरे-धीरे दर्द और थकान की ओर बढ़ता है। यही कारण है कि कई लोग बिना कारण सिरदर्द, कंधे और पीठ में दर्द जैसी समस्याओं का सामना करने लगते हैं।

Text Neck Syndrome और रीढ़ की हड्डी पर दबाव

जब हम बिस्तर पर झुककर मोबाइल देखते हैं, तो गर्दन और कंधे का एंगल अक्सर गलत हो जाता है। अमेरिकन ऑस्टियोपैथिक एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, लंबे समय तक झुककर स्क्रीन देखने से गर्दन की हड्डियों पर लगभग 27 किलोग्राम तक का दबाव पड़ सकता है। इसे Text Neck Syndrome कहा जाता है, जिसमें लगातार झुकने से गर्दन की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और कंधों में दर्द रहने लगता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ गर्दन तक सीमित नहीं है। गलत पोजिशन में लंबे समय तक रहने से रीढ़ की हड्डी पर भी दबाव बढ़ता है, जिससे समय के साथ स्लिप डिस्क और मांसपेशियों में कमजोरी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। रात को सोने से पहले मोबाइल पर रील्स देखना नींद की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है, जिससे शरीर और दिमाग दोनों ही थकान महसूस करने लगते हैं।

डिजिटल स्क्रीन से आंखों और मानसिक स्वास्थ्य पर खतरा

बिस्तर पर लेटकर रील्स देखने की आदत केवल शारीरिक स्वास्थ्य को ही नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है। लगातार स्क्रीन पर देखने से आंखों में ड्रायनेस, जलन और ब्लर विज़न जैसी समस्याएं होने लगती हैं। नींद से पहले स्क्रीन टाइम बढ़ने से मेलाटोनिन हार्मोन का संतुलन बिगड़ता है, जिससे नींद न आने की समस्या या नींद की गुणवत्ता घट जाती है।

इसके अलावा, लगातार छोटे-छोटे वीडियो देखने से ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है। मानसिक थकान बढ़ती है और स्ट्रेस या चिंता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। डॉक्टरों का सुझाव है कि बिस्तर पर मोबाइल इस्तेमाल करने के बजाय स्क्रीन टाइम को सीमित किया जाए और सोने से कम से कम 30 मिनट पहले मोबाइल का उपयोग बंद कर दिया जाए।

बिस्तर पर लेटकर रील्स देखना केवल एक मनोरंजन की आदत नहीं, बल्कि धीरे-धीरे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की वजह बन सकती है। गर्दन और रीढ़ पर दबाव, आंखों की थकान, नींद में खलल और मानसिक स्वास्थ्य पर असर – यह सभी संकेत हैं कि डिजिटल आदतों को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। स्वस्थ रहने के लिए मोबाइल का सही उपयोग और स्क्रीन टाइम लिमिट करना बेहद जरूरी है।

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