कुशीनगर जिले के एक गाँव में एक शादी उस समय विवाद में बदल गई जब दुल्हन पक्ष द्वारा दिया गया चढ़ावा वर पक्ष को कम लगा। शादी की सारी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थीं और बारात धूमधाम से मंडप पहुँची थी। जैसे ही चढ़ावा की थाली निकली, वर पक्ष ने इसे “अपर्याप्त” बताया और अतिरिक्त सामान तथा नगद की मांग रख दी। दुल्हन पक्ष ने अपनी क्षमता के अनुसार दिया गया चढ़ावा पर्याप्त बताया, लेकिन वर पक्ष अपनी मांग पर अड़ा रहा। इस अचानक विवाद ने पूरे माहौल को तनावपूर्ण बना दिया।
पंचायत में घंटों चली बातचीत, फिर भी कोई समाधान नहीं
विवाद को देखते हुए गाँव के बुजुर्गों और रिश्तेदारों ने पंचायत बुलाई। पंचायत में कई बार बातचीत हुई और समझौते के प्रयास किए गए। दुल्हन पक्ष ने अपनी मर्यादा और वित्तीय स्थिति के हिसाब से समझौता करने की कोशिश की, लेकिन वर पक्ष ने किसी भी रूप में संतोष नहीं किया। पंचायत में घंटों चर्चा के बावजूद मामला सुलझ नहीं सका और विवाद और बढ़ता गया।
बारात बिना दुल्हन लौट गई, माहौल हुआ तनावपूर्ण
आख़िरकार शादी का माहौल इतना बिगड़ गया कि बारात पूरी तरह से बिना दुल्हन के लौट गई। दुल्हन पक्ष गहरे सदमे में रह गया और पूरे गाँव में इस घटना ने हंगामा मचा दिया। इस घटना ने साफ़ कर दिया कि दहेज और चढ़ावा जैसी प्रथाएँ अब भी कई परिवारों की खुशियों पर भारी पड़ती हैं। लोग सवाल कर रहे हैं कि कब तक ये सामाजिक बुराइयाँ रिश्तों को तोड़ती रहेंगी।
सामाजिक चेतावनी: दहेज प्रथा से बढ़ रहे विवाद
स्थानीय लोग और सामाजिक कार्यकर्ता इस घटना को गंभीरता से देख रहे हैं। उनका कहना है कि लड़की पक्ष ने पूरा मान-सम्मान दिया था, फिर भी वर पक्ष की ज़िद ने शादी को असंभव बना दिया। कानून तो दहेज को अपराध मानता है, लेकिन सामाजिक स्तर पर यह प्रथा अब भी जड़ें जमा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाएँ भविष्य में भी कई रिश्तों को टूटने से नहीं बचा पाएंगी। अब यह मामला समाजिक चर्चा और पुलिस स्तर तक पहुँच सकता है।
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