Wednesday, June 7, 2023

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उप्र विधानसभा चुनाव के लिये बनाई नयी रणनीति, कांग्रेस व बसपा को दिया तगड़ा झटका

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लखनऊ। विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को सियासत में मात देने के लिए विपक्षी पार्टियां अपने-अपने हिसाब से तैयारियां शुरू कर दी हैं। राजनीतिक जानकार कयास लगा रहे थे कि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी कांग्रेस और मायावती की बसपा के साथ गठबंधन कर भाजपा का विजय रथ रोकने का प्रयास करेगी, लेकिन सपा ने कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी को तगड़ा झटका दे दिया है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी बसपा और कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगी, सपा सिर्फ छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय लोकदल, महान दल और जनवादी पार्टी के साथ गठबंधन है। कहा जा रहा है कि सपा छोटे दलों के लिए 35 से 40 सीटें छोड़ सकती है बाकी सीटों पर पार्टी अपने उम्मीदवार उतारेगी, उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं।

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मिली जानकारी के अनुसार सपा लगभग 5 से 6 छोटे दलों से गठबंधन कर उत्तर प्रदेश चुनाव लड़ सकती है। राजनीतिक जानकार ऐसा कयास इसलिये भी लगा रहे हैं कि बीते दिनों सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बयान आया था कि छोटे दलों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस, सपा व बसपा रणभूमि में उतर गए हैं। तीनों ही दलों की नजरें एक दूसरे के वोट बैंक पर हैं। इन दिनों मायावती लगातार ट्वीट के जरिए सपा पर निशाना साध रही हैं, वहीं यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने भी सपा को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है। ऐसे में इन तीनों विपक्षी पार्टियों का यूपी चुनाव में एक साथ आना लगभग नामुमकिन है, इन पार्टियों ने छोटी पार्टियों के साथ अपना समीकरण बिठाना शुरू कर दिया है। वहीं दूसरी ओर पिछले कई विधानसभा चुनावों से अलग इस बार उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरणों साधने की की भी तस्वीर नजर आ रही हैं।

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पारम्परिक वोटों से अलग सियासी पार्टियां दूसरी जातियों पर नजर गड़ाए बैठी हैं। चुनावों में अस्तित्‍व बचाने की जद्दोजहद कर रही बहुजन समाज पार्टी जहां एक तरफ ब्राह्मणों को लुभाने में जुटी है, तो वहीं सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ओबीसी और दूसरी पिछड़ी जातियों पर नजर गड़ाए बैठी है, जबकि समाजवादी पार्टी के लिए भी चुनौती कम नहीं है, क्‍योंकि जहां एक तरफ पिछली बार की तरह वोटों के ध्रुवीकरण का खतरा है, तो वहीं गैर यादव और पिछड़ी जातियों में दूसरे बड़े दलों के दखल का खतरा भी बराबर बना हुआ है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के लिए भी अपने कोर वोटर्स के साथ सवर्णों खासकर ब्राह्मणों को अपने पाले में करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। अभी हाल ही में लालू ने मुलायम सिंह से मुलाकात की थी, जिसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।

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