यूपी । हरतालिका तीज का व्रत इस साल 1 सितंबर को रखा जाएगा। हिंदू धर्म के अनुसार हरतालिका तीज के व्रत का बड़ा महत्व है। विवाहित महिलाएं इस दिन पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना के लिए निर्जल व्रत रखती हैं। व्रत में महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं। इसे भी पढ़ें:देश में आतंकी हमले की साजिश, धार्मिक स्थानों पर आतंकी हमले के इनपुट मिले, सुरक्षा बढ़ाई गई
क्या आप हरतालिका व्रत के पीछे की कहानी और इसके महत्व के बारे में जानते हैं? क्या आपने कभी इस व्रत की पृष्ठभूमि को खंगालने की कोशिश की है। आइए आपको बताते हैं आखिर कैसे शुरू हुआ था हरतालिका तीज का व्रत।
जानें व्रत के पीछे की कहानी-
लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा खाकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे। इसे भी पढ़ें: जौहर यूनिवर्सिटी मामले में आज़म की बहन से पूछताछ, जानिए क्या है पूरा मामला?
एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बताई तो वह बहुत दुखी हो गईं और जोर-जोर से विलाप करने लगीं।
इसके बाद अपनी एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं, जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं।
तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गईं और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गईं। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। इसे भी पढ़ें: 26 अगस्त राशिफलः भोलेबाबा की कृपा से मिथुन, सिंह व कन्या राशि के जातकों को मिलेंगे शुभ समाचार
इसके बाद माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं।
साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झूला-झूलने की प्रथा है।