मध्य प्रदेश के झबुआ में कुछ तस्वीरें इन दिनों काफी वायरल हो रही है। धुलेंडी के तेजाजी मंदिर के पास शिव मंदिर प्रांगण में चूल परंपरा निभाई गई। इस परंपरा को यहां के लोग पूरी आस्ता के साथ निभाते है। खास बात यह है कि इसमें लोग धधकते अंगारों से होकर गुजरते है। इसके लिए करीब 121 किलो लकड़ी जलाकर अंगारे तैयार किए गए। इसमें 21 किलो शुद्ध घी का इस्तेमाल किया गया। जिसके बाद शुरु हुआ आस्था की वो परंपरा जिसमें 40 से ज्यादा मन्नतधारी इन अंगारों पर चले। वही आयोजन को देखने सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचे।
इस परंपरा को निभाने वालों में महिला और पुरुष दोनों शामिल थे। खास बात तो यह थी कि कुछ लोगों ने आग से गुजरने से पहले पैरों में मेहंदी लगायी और कुछ बिना मेहंदी के आग पर से गुजरे। वही जैसे ही अंगारे ठंडे होते दिख उसमें लगातार घी डालकर आग धधकाई जाती रही।
पेटलावद अस्पताल में पदस्थ डॉ. गोपाल चोयल का कहना है, पैर नहीं जलने के पीछे मेडिकल कारण ये माना जा सकता है कि ये सबकुछ काफी जल्दी होता है। शरीर की त्वचा का रेसिस्टेंस आग को लेकर जितना होता है, उससे कम समय में लोग अंगारों से निकल जाते हैं। कभी-कभार किसी को अंगारे असर भी करते हैं। अगर त्वचा पर कोई लेप लगा हो तो गर्मी और कम असर करती है।
मेडिकल के मुताबिक आग के संपर्क में कितनी देर रहते है उससे हमारी त्वचा पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन जिस तरह से इस धधकती आग पर से लोग गुजरे और इस दौरान उनके ना तो कपड़े जले और ना पैर, वो लोगों की आस्था को और प्रबलता देता है।