आम चुनाव मैदान में तैयारी करने की कांग्रेस और बीजेपी को अब नोटा का डर सताने लगा है. क्योंकि, दोनों ही पार्टियों के चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों को अपने प्रतिद्वंदी नेता से ही मुकाबला नहीं करना होगा.बल्कि, एक मुकाबला उनका नोटा से भी होगा. भारतीय निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट पर नज़र डाली जाए तो नोटा यानी ‘नन ऑफ द अबव’ ने पिछले विधानसभा चुनाव में कई सीटों के चुनाव समीकरणों को बदल दिया है.विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में नोटा को करीब डेढ़ फीसदी दी वोट मिले थे. देखा जाए तो नोटा का प्रावधान चुनाव प्रक्रिया और उम्मीदवारों के चयन में सुधार के लिए किया गया था.
वैसे अब तक राजनीतिक पार्टियों में इसका बहुत सकारात्मक असर तो दिखाई देना शुरू नहीं हुआ. लेकिन, मनपसंद उम्मीदवार मैदान में ना होने से नोटा की भूमिका जरूर बढ़ती हुई देखी गई है. पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में नोट आने कई सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के गणित बिगाड़ सकते है.
बता दें कि जोबट विधानसभा सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में 5 हजार 139 लोगों ने नोटा पर भरोसा जताया था. आदिवासी क्षेत्र वाली इस विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के माधव सिंह डावर सिर्फ 2 हजार वोटों के अंतर से हार गए थे. यदि नोटा पर इतने वोट ना पड़ते तो बीजेपी को यह सीट अपने खाते में आने की पूरी उम्मीद थी.
ग्वालियर साउथ सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार और पूर्व मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा कांग्रेस के प्रवीण पाठक से सिर्फ 121 वोटों से हारे थे. जबकि इस सीट पर नोटा का बटन 1हजार 550 लोगों ने दबाया था. जाहिर है कि नोट ने इस सीट पर भी बीजेपी का गणित बिगाड़ा. ये भी पढ़ें:यूपी में होली के दिन हिंसा की आशंका, डीजीपी ने किया बड़ा खुलासा