उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने के लिए बेशक समाजवादी पार्टी और बसपा ने मजबूत गठबंधन बना लिया है। लेकिन, दोनों के सामने मुसीबत भी कम नहीं है. कभी राजनीति में धुर विरोधी रही बसपा से गठबंधन करके भले ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव बदलाल का समीकरण बनाने का ऐलान कर रहे हों. ये भी सच है कि शुरुआती दौर से लेकर अब तक के सफर में समाजवादी पार्टी पहली बार इतनी सिमटती नज़र आ रही है.गठबंधन की सीटों के बंटवारे की घोषणा होने के बाद तो ये तस्वीर और भी साफ हो गई है।
सीट बंटवारे के लिए अपनाया गया सीटा का आंकड़ा साफ संकेत देता है कि बसपा सुप्रीमो मायावती शर्तो पर सपा को घुमाने में ज्यादा सफल हुई हैं। गठबंधन के लिए मायावती ने जितना झुकाया अखिलेश उतना ही झुकते गए। उन्होंने वहां भी सपा से सीटें ले ली जहां पिछले चुनाव में बसपा तीसरे नंबर पर थी। इस तरह मायावती अपने संगठन के लिए संतुलन बनाने में कामयाब रहीं।गठबंधन के घोषित समझौता फॉर्मूला को देखें तो उसमें भी बसपा अपनी मनवाने में कामयाब रही है। बताया गया था कि पिछले चुनाव में जिन सीटों पर सपा व बसपा में जो पार्टी दूसरे नंबर पर आई थी वे सीटें उसके खाते में जाएंगी, लेकिन पूर्वी व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में ऐसा नहीं हो पाया।
सपा के शानदार प्रदर्शन वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उस मुरादाबाद मंडल में भी बसपा ने आधी सीटें हथिया लीं जहां 2014 के चुनाव में उसके उम्मीदवार तीसरे नंबर पर आए थे।मंडल की सभी छह सीटों पर 2014 में सपा ही दूसरे नंबर पर थी। कई सीटों पर तो बसपा को सपा की तुलना में काफी कम वोट मिले थे। माना जा रहा था कि तय फॉर्मूला के तहत सपा को इस मंडल की सभी सीटें मिल जाएंगी, लेकिन दो दिन पहले जो सूची जारी हुई उसने सभी अनुमान पलट दिए। ये भी पढ़ें:पुलवामा अटैक के बाद प्लेन हाईजैक की धमकी, देश के सभी एयरपोर्ट अलर्ट पर