पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की महामारी मची हुई है, लेकिन अभी तक इसकी दवा मिल पाई है न दुआ वैज्ञानिक आए दिन इस बीमारी पर अपनी रिसर्च कर रहे हैं लेकिन अभी इसकी वैक्सीन किसी को नहीं मिल पाई हैं. लेकिन अगर हम कहें आपसे कि कोरोना का इलाज संभव है तो आप कहेंगे बिना किसी तथ्य के कैसे माने, तो चलिए आपको बतातें हैं कि इस बीमारी का इलाज कहां छिपा है. दरअसल सेना के रिटायर्ड एक अफसर ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि कोरोना का इलाज मां गंगा में छिपा है वहां शोध करने की जरुरत है।
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रिटायर्ड अफसर लेफ्टीनेंट कर्नल ने जल शक्ति मंत्रालय को पत्र लिखा है और प्रधानमंत्री से कहा है कि अगर थोड़ी सी गंभीरत के साथ गंगा नदी पर शोध किया जाये तो गंगा के पानी से कोरोना जैसी महामारी का इलाज संभव हो सकता है।
अतुल्य गंगाा अभियान से जुड़े यह अफसर और उनके दूसरे साथी जल्द ही गंगा की 5 हज़ार किमी की परिक्रमा शुरु करने जा रहे हैं. इस दौरान कोरोना महामारी का इलाज भी मिल जाएगा मकसद गंगा को प्रदूषण से बचाना और यह परिक्रम पैदल की जाएगी।
अफसर का दावा गंगा में छिपा कोरोना का इलाज
रिटायर्ड सैन्य अफसर मनोज किश्वर ने बताया कि गंगा नदी की गदंगी का सफाया करने की मुहिम छेड़ी है. इसे अतुल्य गंगा नाम दिया गया है. इस अभियान में कई पूर्व सैन्य अधिकारियों का दल गंगा उद्गम स्थल गोमुख से बंगाल की खाड़ी तक गंगा के किनारे को पैदल नापेंगा. इस यात्रा का मकसद पर्यटन नहीं बल्कि गंगा नदी को स्वच्छ और निर्मल बनाना है.
यात्रा में पूर्व सैन्य अधिकारियों का सहयोगी गूगल और आईआईटी दिल्ली भी बन रहा है. गंगा नदी में हर जगह प्रदूषण का स्तर और पानी का बहाव जैसे तमाम बिंदुओं की जांच होगी. इसकी जिओ टैगिंग भी की जाएगी. इस साल से शुरू होने वाली यह मुहिम अगले 11 वर्षों तक चलेगी. आईआईटी के विशेषज्ञ और वैज्ञानिक जैसे तमाम लोग भी पूर्व सैनिकों का साथ देंगे.
गौरतलब है कि रिटायर्ड अफसर और अतुल गंगा के संस्थापक मनोज किश्वर का कहना है कि गंगा की क्यूरिटिव प्रॉपर्टी पर पहले भी रिसर्च की गई है. जिसमें आईआईटी रुड़की,आईआईटी कानपुर,भारतीय विश्वविज्ञान अनुसंधान संस्थान(आईआईटीर) लखनऊ,इमतेक सीएसआईआर, सूक्ष्य जैविकिय अध्ययन केंद्र और नीरी आदि ने किए हैं.कुछ रिसर्च में यह दावा किया गया है कि गंगा का वायरस कुछ मामलों में दूसरे वायरस पर भी असर करता है।
आईआईटी रूड़की से जुड़े रहे वैज्ञानिक देवेन्द्र स्वरूप भार्गव की रिसर्च है कि गंगा का गंगत्व उसकी तलहटी में ही मौजूद है और आज भी है. गंगा में आक्सीजन सोखने की क्षमता है. कई रिसर्च में यह भी पाया गया कि बैक्टेरियोफाज (बैक्टेरिया खाने वाला वायरस) कुछ वायरस पर भी असरकारक हैं.
अलग-अलग रिसर्च में यह साबित हो चुका कि हैजा, पेचिश, मेनिन्जाइटिस, टीबी जैसी गंभीर बीमारियों के बैक्टेरिया भी गंगाजल में नहीं टिक पाते हैं.एक समय था जब दुनिया की चार बड़ी नदियों में ये बैक्टेरियोफाज पाया जाता था. समय की मार ने बाकी तीन नदियों और उनकी सभ्यताओं को मिटा दिया. अब सिर्फ गंगा ही है जिसके पास यह अमृत तत्व मौजूद है।
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