Monday, December 8, 2025
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उदयपुर फाइल्स’ को लेकर बढ़ा विवाद, हाईकोर्ट ने स्क्रीनिंग पर लगाई रोक, निर्माता पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

फिल्म के निर्माता-निर्देशक का कहना है कि यह एक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है और इसका मकसद समाज को जागरूक करना है, लेकिन कुछ संगठनों और समुदायों ने फिल्म को "धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाला" बताते हुए इसका विरोध शुरू कर दिया।

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Udaipur Files Controversy: साल 2025 की सबसे चर्चित और विवादास्पद फिल्मों में शुमार ‘उदयपुर फाइल्स’ अब कानूनी पचड़े में उलझ गई है। राजस्थान हाईकोर्ट ने फिल्म की स्क्रीनिंग पर रोक लगा दी है, जिसके बाद अब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। फिल्म के निर्माता-निर्देशक का कहना है कि यह एक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है और इसका मकसद समाज को जागरूक करना है, लेकिन कुछ संगठनों और समुदायों ने फिल्म को “धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाला” बताते हुए इसका विरोध शुरू कर दिया।

फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ 2022 में राजस्थान के उदयपुर में हुई एक दिल दहला देने वाली हत्या की पृष्ठभूमि पर आधारित है। फिल्म के ट्रेलर के रिलीज़ के साथ ही विवाद शुरू हो गया था। कुछ वर्गों ने इसे “एकतरफा और भड़काऊ” करार दिया, वहीं फिल्म के समर्थकों का कहना है कि यह अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है।

राजस्थान हाई कोर्ट ने स्क्रीनिंग पर लगे रोक

राजस्थान हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को गंभीर मानते हुए फिल्म की सार्वजनिक स्क्रीनिंग पर अस्थायी रोक लगा दी है। अदालत का कहना है कि जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि फिल्म सामाजिक सौहार्द को नुकसान नहीं पहुंचाएगी, तब तक इसे सार्वजनिक रूप से नहीं दिखाया जा सकता।

विवाद के चलते फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर भी तीखी बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसे “सच दिखाने का साहसिक प्रयास” बता रहे हैं, तो कुछ इसे “नफरत फैलाने की साजिश” कह रहे हैं। राजनीतिक दलों ने भी इस मुद्दे पर दो टूक रुख अपनाया है। जहां एक पक्ष फिल्म के समर्थन में खड़ा है, वहीं दूसरा पक्ष इसे चुनावी फायदा उठाने का जरिया बता रहा है।

मेकर्स ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

फिल्म के निर्माता अब इस रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं। उनका कहना है कि सेंसर बोर्ड से फिल्म को पहले ही प्रमाण पत्र मिल चुका है और हाईकोर्ट की यह रोक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।

अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि फिल्म को थियेटर में जगह मिलेगी या नहीं। इस केस ने एक बार फिर अभिव्यक्ति की आज़ादी और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन की बहस को हवा दे दी है।

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