भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुछ गाने ऐसे हैं, जो सिर्फ सुनने भर से दिल में गहरी छाप छोड़ जाते हैं। इन्हीं में से एक है – “एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल…”। इस गीत की गहराई सिर्फ इसकी पंक्तियों में ही नहीं, बल्कि उस दौर की हकीकत में भी छिपी है, जब इसे लिखा गया था। 1949 का वह समय, जब आज़ाद भारत में सत्ता के खिलाफ उठी हर आवाज़ को दबाने की कोशिश हो रही थी। कलाकार, लेखक और बुद्धिजीवी, जो स्वतंत्र विचार रखते थे, उन्हें जेलों में डाल दिया जाता था।
पांच मिनट में लिखा अमर गीत
इस गाने का जन्म भी ऐसी ही परिस्थितियों में हुआ। उस दौर के एक साहसी गीतकार और लेखक, जो लेफ्ट विचारधारा से जुड़े थे, सरकार के दबाव में माफी मांगने से इंकार कर बैठे। नतीजा – उन्हें जेल की काल कोठरी में डाल दिया गया। वहां, महज़ पांच मिनट में उन्होंने ये गीत लिख डाला। यह केवल शब्दों का मेल नहीं था, बल्कि समय, संघर्ष और विचारों की आज़ादी की मिसाल था। उस समय कई नामचीन कलाकार जैसे बलराज साहनी भी इसी विचारधारा के कारण कैद थे।
50 साल बाद भी कायम है जादू
वक्त बीता, लेकिन इस गीत का असर कम नहीं हुआ। रिलीज़ के बाद यह गाना लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया। मायूसी के पलों में, उम्मीद की तलाश में या जीवन की सच्चाइयों को समझने में – यह गीत हर बार नई ऊर्जा देता है। आज, 50 साल बाद भी इसकी लोकप्रियता कम नहीं हुई। यह गाना इस बात का प्रमाण है कि असली कला कभी पुरानी नहीं होती, और साहस से जन्मी रचनाएं हमेशा अमर रहती हैं।
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