भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में स्थित श्रीरंगम का श्री रंगनाथस्वामी मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद खास है। इसी मंदिर में रखा गया है प्रसिद्ध संत और वैष्णव आचार्य गुरु रामानुजाचार्य का शरीर, जो पिछले 900 सालों से बिना सड़े-गले सुरक्षित है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस शरीर को न तो किसी आधुनिक तकनीक से संरक्षित किया गया, और न ही किसी रासायनिक प्रक्रिया से ममी बनाया गया — फिर भी आज तक वह जीवित जैसी स्थिति में मौजूद है।
कौन थे गुरु रामानुजाचार्य?
गुरु रामानुजाचार्य (1017–1137 ईस्वी) दक्षिण भारत के महान संत, दार्शनिक और विशिष्टाद्वैत वेदांत दर्शन के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने ईश्वर की भक्ति, समानता और समाज में एकता का संदेश दिया। माना जाता है कि उन्होंने भगवान विष्णु के सबसे बड़े मंदिरों में से एक श्री रंगनाथस्वामी मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। उनके अनुयायियों का कहना है कि रामानुजाचार्य ने मृत्यु नहीं पाई, बल्कि उन्होंने अपने शरीर को ध्यानावस्था में छोड़ दिया ताकि उनकी देह धर्म का प्रतीक बन सके।
कैसे सुरक्षित है उनका शरीर?
किंवदंतियों और ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, गुरु रामानुजाचार्य के देह त्याग के बाद उनके अनुयायियों ने औषधीय तेलों, हर्बल पाउडर और चंदन लेप से उनके शरीर को संरक्षित किया। शरीर को ताम्र और चूने के मिश्रण से हल्का लेप किया गया, जिससे वह प्राकृतिक रूप से ममी में बदल गया। यह भी कहा जाता है कि मंदिर का वातावरण और निरंतर पूजा-पाठ से देह की ऊर्जा संतुलित बनी रहती है।
आज भी मंदिर में ‘जीवंत’ उपस्थिति का अनुभव
आज भी श्री रंगनाथस्वामी मंदिर में जब भक्त रामानुजाचार्य की मूर्ति या शरीर के दर्शन करते हैं, तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे गुरु अभी भी ध्यान में लीन हैं। उनके शरीर पर नियमित रूप से कुंकुम, चंदन और वस्त्र चढ़ाए जाते हैं। आंखें बंद हैं, पर चेहरा शांत और जीवंत दिखाई देता है। मंदिर प्रशासन इसे “जीवंत समाधि” कहता है, न कि ममी।
वैज्ञानिक भी नहीं खोज पाए रहस्य
कई बार वैज्ञानिकों ने जांच की कोशिश की कि आखिर 900 साल पुराना यह शरीर सड़-गला क्यों नहीं। लेकिन अब तक कोई भी निष्कर्ष नहीं निकल पाया। किसी के अनुसार मंदिर के माइक्रो-क्लाइमेट और औषधीय पदार्थों ने इसे संरक्षित रखा है, तो किसी के अनुसार यह आध्यात्मिक ऊर्जा का परिणाम है। जो भी सच हो — यह भारत की सबसे रहस्यमयी और श्रद्धापूर्ण “जीवित ममी” बन चुकी है।
