Bihar Election Result 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने जिस एक नाम की सबसे ज्यादा चर्चा कराई, वह है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। बीजेपी ने उन्हें अपनी सबसे बड़ी स्टार प्रचारक टीम में शामिल किया था, और आंकड़े बता रहे हैं कि यह फैसला पार्टी के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ। योगी आदित्यनाथ ने बिहार में कुल 31 सीटों पर ताबड़तोड़ रैलियां कीं, रोड शो किए और प्रत्याशियों के लिए माहौल खड़ा किया। नतीजा यह रहा कि इन 31 में से लगभग 25 सीटों पर NDA लगातार बढत बनाए हुए दिख रहा है और कई जगहों पर अंतर इतना है कि जीत लगभग तय मानी जा रही है। दानापुर, बक्सर, लखीसराय, जमुई, जहानाबाद और मोतिहारी की सभाओं में योगी के भाषणों का सीधा असर दिखाई दे रहा है। भीड़ का उत्साह और वोटिंग प्रतिशत में आई बढ़ोतरी से साफ हो गया कि उनकी लोकप्रियता बिहार के ग्रामीण और शहरी, दोनों इलाकों में असर छोड़ गई। लेकिन इन सबके बीच एक सीट ऐसी भी है, जहां योगी के प्रचार के बावजूद मुकाबला बेहद कांटे का बना हुआ है और NDA बढ़त बनाने में नाकाम दिख रहा है। यही सीट पूरे राजनीतिक समीकरण को और दिलचस्प बना रही है।
दानापुर से जमुई तक… जहाँ-जहाँ योगी गए, वहाँ NDA की लहर तेज
सीएम योगी आदित्यनाथ की रैलियां उन क्षेत्रों में ज्यादा केंद्रित रहीं, जहां जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दे चुनाव को उलझा सकते थे। बीजेपी को उम्मीद थी कि योगी का कद इन जटिल समीकरणों को साधने में बड़ी भूमिका निभाएगा, और ठीक वैसा ही हुआ।
दानापुर में उनकी रैली के बाद महिला वोटरों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़त देखी गई, वहीं जमुई में युवा मतदाताओं का रुझान NDA की ओर तेजी से मुड़ा। बक्सर में अपराध और विकास पर उनके आक्रामक भाषणों ने माहौल बदल दिया।
विश्लेषकों का कहना है कि योगी आदित्यनाथ का चुनावी स्टाइल तेज और मुद्दों पर केंद्रित बिहार के वोटरों के साथ मेल खाता है। यही वजह रही कि जिन 31 सीटों पर वे गए, उनमें से लगभग 25 सीटों पर NDA आराम से बढ़त बनाए हुए है।
इन सीटों में कई ऐसी भी हैं, जहां पहले NDA कमजोर माना जा रहा था, लेकिन चुनाव के आखिरी चरणों में योगी के रोड शो ने हवा बदल दी। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उनकी सभाएं वोटरों को निर्णायक रूप से प्रभावित करने में कामयाब रहीं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां विपक्ष ने जातिगत ध्रुवीकरण का बड़ा दांव खेला था।
एक सीट ने बढ़ाई BJP की टेंशन… योगी के प्रचार के बाद भी क्यों नहीं बनी बात?
इतने बड़े प्रभाव के बावजूद एक सीट ऐसी है, जो बीजेपी और NDA दोनों की चिंता का कारण बनी हुई है। इस सीट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हाई-प्रोफाइल रैली हुई थी, बड़ी भीड़ जुटी थी, माहौल भी बना था… लेकिन जब वोटिंग हुई तो समीकरण उलटे पड़ गए।
यह सीट वह है जहाँ स्थानीय स्तर पर बगावत, असंतोष और टिकट चयन को लेकर विवाद NDA के लिए भारी पड़ गए। विपक्ष ने इन मुद्दों को हवा दी और जमीन पर संगठन कमजोर पड़ता दिखा।
NDA के अंदर कई नेताओं के बीच तालमेल की कमी भी इस सीट पर हार का संभावित कारण मानी जा रही है। स्थानीय समस्याएँ, उम्मीदवार की छवि और विपक्ष की रणनीति इतने प्रभावी रहे कि योगी का प्रचार भी यहां कमजोर पड़ गया।
इस सीट पर वोटों का अंतर बेहद मामूली है और गणना के बाद ही तस्वीर साफ होगी। हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि योगी का प्रभाव यहां भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ, बल्कि उनकी रैली ने मुकाबला एकतरफा होने से बचाया और इसे बेहद करीबी बना दिया। अगर अंत तक टक्कर बनी रहती है, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि योगी की मौजूदगी ने NDA की स्थिति बेहतर करने में मदद की।
बिहार भाजपा के भीतर भी योगी आदित्यनाथ के प्रभाव को लेकर चर्चा तेज हो गई है। कई नेता यह बात मान रहे हैं कि उनकी एंट्री ने चुनाव की दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अगले चुनावों में भी पार्टी उन्हें बिहार में ज्यादा जिम्मेदारी दे सकती है। दूसरी ओर विपक्ष योगी फैक्टर की कमजोरी ढूंढने में लगा है, लेकिन 25 में से 31 सीटों का आंकड़ा उनके लिए बड़ा झटका है।
बिहार की राजनीति में यह पहला मौका नहीं है जब बाहरी प्रदेश के किसी नेता ने बड़े पैमाने पर प्रभाव छोड़ा हो, लेकिन योगी का प्रभाव अलग रहा—सीधा, स्पष्ट और चुनावी माहौल को अचानक बदल देने वाला।
