बिहार की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से चल रहा सस्पेंस आखिरकार खत्म हो गया है। कई कयासों, चर्चाओं और बंद कमरों में बैठकों के बाद NDA विधायक दल ने तय कर दिया है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के तौर पर ही राज्य की बागडोर संभालेंगे। देर शाम हुई बैठक में सभी सहयोगी दलों ने एक मत से उनके नाम पर सहमति जताई। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज थी कि इस बार शायद चेहरा बदल सकता है, लेकिन NDA ने पुराने और अनुभवी चेहरे पर ही भरोसा जताया है।
नीतीश एक बार फिर बिहार के 19वें मुख्यमंत्री के रूप में इतिहास दोहराने जा रहे हैं, जिसकी गवाही पिछले दो दशकों से चली आ रही उनकी पकड़ देती है। सूत्रों के मुताबिक, बैठक में जेडीयू और भाजपा दोनों के नेताओं ने माना कि राज्य की मौजूदा परिस्थितियों में नीतीश से बेहतर स्थिरता और अनुभव कोई नहीं दे सकता। इस तरह नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने की राह पूरी तरह साफ हो गई है।
शपथ ग्रहण की तैयारियां तेज: पटना का गांधी मैदान बनेगा गवाह
20 नवंबर की सुबह से ही पटना का गांधी मैदान राजनीतिक रंग में रंग जाएगा। यहां नए मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद का शपथ ग्रहण होना है। यह दसवीं बार होगा जब नीतीश अपने पद की शपथ लेंगे—एक ऐसा रिकॉर्ड जो उन्हें देश के सबसे लंबे समय तक सत्ता संभालने वाले नेताओं की कतार में और मजबूती से खड़ा कर देता है। शपथ समारोह में भारी संख्या में नेताओं, अधिकारियों और विशेष मेहमानों के पहुंचने की संभावना है।
सूत्रों का कहना है कि मुख्य मंच की सुरक्षा को लेकर SPG और पुलिस की टीमों ने पहले ही मैदान का निरीक्षण शुरू कर दिया है। भीड़ नियंत्रण, वीवीआईपी मूवमेंट और मीडिया व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। लोगों में भी यह उत्सुकता है कि नीतीश इस नई सरकार में किन चेहरों को मौका देंगे। यह भी चर्चा है कि इस बार कैबिनेट में युवाओं और महिलाओं की भूमिका बढ़ सकती है।
हर तरफ यही सवाल गूंज रहा है—कौन-कौन होंगे नीतीश के साथ शपथ मंच पर?
NDA की रणनीति पर सभी की नजर
NDA द्वारा नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनाए जाने के फैसले ने बिहार की राजनीति का स्वाद फिर बदल दिया है। विपक्ष को इस फैसले के बाद अपनी रणनीति नए सिरे से तैयार करनी होगी। महागठबंधन इस घोषणा के बाद लगातार नीतीश और NDA पर निशाना साध रहा है। दूसरी ओर, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि NDA का यह फैसला पूरी तरह रणनीतिक है।
इसके पीछे दो तर्क दिए जा रहे हैं—पहला, नीतीश का अनुभवी चेहरा विकास मुद्दों को मजबूती देता है। दूसरा, आगामी राजनीतिक कार्यक्रमों और लोकसभा चुनावों के मद्देनजर NDA एक स्थिर चेहरा जनता के सामने रखना चाहता है। जेडीयू के अंदर भी पिछले कुछ दिनों से नेतृत्व को लेकर उठ रही आवाजें आज की बैठक के बाद शांत होती दिखीं।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह फैसला न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य के गठबंधन समीकरणों को भी प्रभावित करेगा।
जनता की उम्मीदें बढ़ीं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं
नीतीश कुमार जब भी सत्ता में वापस आते हैं, जनता में उम्मीदों की एक नई लहर दौड़ती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कानून-व्यवस्था और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे मुद्दे इस बार भी जनता की प्राथमिकता में हैं। खासकर युवाओं को रोजगार और उद्योगों का विकास, नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती होने वाली है। बिहार में बुनियादी ढांचे से लेकर निवेश आकर्षण तक कई ऐसे सेक्टर हैं जिनमें तुरंत सुधार की आवश्यकता है। नीतीश आने वाले दिनों में कौन-सी नई योजनाएं लाते हैं, यह सबकी नज़र में रहेगा। हालांकि, NDA का दावा है कि इस बार मंत्रिमंडल गठन से लेकर अगले पांच साल की नीतियों तक हर फैसला जनता की जरूरतों को ध्यान में रखकर ही होगा। जनता यह देखने के लिए उत्सुक है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहते हुए 10वीं पारी में किस तरह नई दिशा देते हैं।
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