बिहार की राजनीति में गुरुवार रात एक ऐसा सन्नाटा पसरा था, जिसका असर सिर्फ एक आवाज़ तोड़ सकती थी, और वही हुआ। 24 घंटे के मौन व्रत के बाद जब प्रशांत किशोर शुक्रवार की सुबह भितिहरवा आश्रम में पत्रकारों के सामने आए, तो बेहद संयमित लेकिन ठोस आवाज़ में उन्होंने साफ कर दिया कि “यह चुनावी हार नहीं, बिहार के लिए एक नई शुरुआत है।”
भितिहरवा आश्रम, जहां गांधी की पदचाप आज भी महसूस होती है, वही स्थान था जहां PK ने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी, और इसी जगह पर उन्होंने आत्ममंथन करते हुए 24 घंटे का मौन उपवास रखा। लेकिन जैसे ही विद्यालय की छात्राओं ने उन्हें जूस और पानी पिलाकर मौन व्रत समाप्त कराया, PK के तेवर तुरंत बदलते नज़र आए। हार की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने वाले प्रशांत किशोर ने कहा कि यह केवल ठहराव था, लेकिन सफर खत्म नहीं हुआ। आखिर बिहार की राजनीति में इतना सन्नाटा क्यों? क्यों PK की चुप्पी ने पूरे सिस्टम में बेचैनी फैला दी? इसका जवाब उनके अगले ऐलान में छिपा था।
15 जनवरी से शुरू होगा निर्णायक जन-अभियान
चुनावी हार के बाद पहला बड़ा संदेश देते हुए PK ने कहा कि वे गांधी के सिद्धांतों से प्रेरित होकर एक बार फिर जन आंदोलन की शुरुआत करेंगे। उन्होंने घोषणा की कि 15 जनवरी से वे बिहार के 1 लाख 18 हजार वार्डों में जाकर ‘बिहार नवनिर्माण संकल्प अभियान’ के तहत आम लोगों से सीधा संवाद करेंगे।
PK ने स्पष्ट किया कि इस अभियान का लक्ष्य न सिर्फ जनता से बातचीत करना है, बल्कि सरकार से किए गए वादों का हिसाब मांगना भी शामिल है। उन्होंने तीखे शब्दों में कहा कि “बिहार को नई दिशा तभी मिलेगी, जब जनता जागेगी और सत्ता से जवाब मांगेगी।” PK का यह ऐलान साफ संकेत देता है कि वे हार से टूटे नहीं, बल्कि और मजबूत होकर लौटे हैं।
यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव में उनके संगठन को सीटें न मिलना सिर्फ एक पड़ाव है, क्योंकि जन सुराज आने वाले वर्षों में एक “मजबूत राजनीतिक ताकत” बनकर उभरेगा। उनकी बातों से साफ था कि PK का फोकस अब चुनाव नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर संरचना और विश्वास को मजबूत करना है। बिहार के हर वार्ड तक पहुंचने का उनका लक्ष्य बताता है कि यह यात्रा सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का भी प्रयास होने वाली है।
10 हजार में वोट खरीदे गए, सरकार पर PK की सीधी चोट
प्रशांत किशोर ने न सिर्फ भविष्य की रणनीति पर बात की, बल्कि चुनावी परिणामों के पीछे की सच्चाई भी सामने रखी। उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि चुनाव से ठीक पहले बड़े पैमाने पर गरीब वोटरों को 10,000 रुपये देकर उनका वोट खरीदा गया और चुनावी सभाओं में 2 लाख रुपये देने का लोकलुभावन वादा कर जनता को भ्रमित किया गया।
PK ने कहा कि “इस चुनाव में पहली बार पैसे से वोट खरीदने का खुला खेल जनता ने देखा। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है और इसके खिलाफ हमें लड़ाई लड़नी होगी।”
इसके साथ ही उन्होंने नीतीश कुमार की सरकार पर भी तंज कसते हुए कहा कि अब उन्हें “ईमानदार मुख्यमंत्री कहना मुश्किल हो गया है”, क्योंकि सरकार में ऐसे लोगों को मंत्री बनाया गया है जिन पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं।
PK की यह टिप्पणी सिर्फ राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि उस दिशा की ओर इशारा थी जहां वे अपनी अगली लड़ाई शुरू करने जा रहे हैं,भ्रष्टाचार, राजनीतिक खरीद-फरोख्त और सत्तातंत्र की अपारदर्शिता के खिलाफ। चुप्पी के बाद जब PK बोले तो ऐसा लगा जैसे अब बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू होने वाला है,और यह अध्याय कहीं ज्यादा तीखा, दृढ़ और निर्णायक होगा।
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