Sunday, December 7, 2025
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नीतीश सरकार पर ओवैसी का बड़ा दांव! समर्थन का इशारा… लेकिन आखिर कौन-सी शर्त अटका रही है फैसला?

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में नीतीश कुमार सरकार को समर्थन देने की इच्छा जताई है, लेकिन सीमांचल के विकास और अधिकारों से जुड़ी बड़ी शर्त रख दी है।

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बिहार की राजनीति में एक बार फिर नई हलचल देखने को मिल रही है। AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी के बिहार पहुंचते ही सियासी गलियारे में चर्चा तेज हो गई है। उनकी पार्टी ने इस बार सीमांचल क्षेत्र में 5 सीटों पर जीत हासिल कर राजनीतिक समीकरणों को नया आकार दिया है। हर बार की तरह इस बार भी ओवैसी ने साफ शब्दों में कहा कि उनकी पार्टी केवल सत्ता की राजनीति करने नहीं आई, बल्कि सीमांचल के लोगों के हक की लड़ाई लड़ने आई है। इस बयान के साथ उन्होंने यह इशारा भी दे दिया कि यदि सरकार उनके क्षेत्र की आवाज सुने तो वे समर्थन देने से पीछे नहीं हटेंगे।

समर्थन का संकेत—लेकिन ओवैसी ने रख दी कड़ी शर्त

ओवैसी ने कहा कि वे नीतीश कुमार की सरकार को समर्थन देने के लिए तैयार हैं, पर शर्त यह है कि सीमांचल के विकास को लेकर ठोस कदम उठाए जाएँ। उनका कहना है कि इस क्षेत्र को लंबे समय से राजनीतिक रूप से नजरअंदाज़ किया गया है, और अब समय आ गया है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोजगार जैसे मुद्दों पर गंभीरता से काम किया जाए। उन्होंने साफ कहा कि “सीमांचल के लोगों को उनका हक मिले, तभी समर्थन पर बात आगे बढ़ेगी।” उनकी यह शर्त न सिर्फ सरकार के लिए चुनौती है, बल्कि सहयोगी दलों और विपक्ष के लिए भी सोचने का विषय बन गई है।

 नीतीश के लिए अवसर या नई मुश्किल?

ओवैसी की पेशकश नीतीश कुमार के लिए एक अवसर भी है और एक नई चुनौती भी। एक ओर सीमांचल में AIMIM की पकड़ सरकार के लिए राजनीतिक फायदे ला सकती है, वहीं ओवैसी की मांगों को पूरा करना आसान नहीं होगा। सीमांचल का बुनियादी ढांचा वर्षों से उपेक्षा का शिकार रहा है, और इसकी मरम्मत के लिए बड़े बजट, जमीन-स्तर पर बदलाव और दीर्घकालिक योजना की जरूरत है। यदि सरकार ओवैसी की शर्तें मानती है, तो इससे उसे मुस्लिम वोट बैंक में भी फायदा मिल सकता है। लेकिन यदि कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो ओवैसी सरकार के लिए उसी तरह मुश्किलें पैदा कर सकते हैं, जैसे वे अक्सर विपक्ष को घेरते आए हैं।

आगे क्या? सियासी बिसात पर कई संभावनाएँ खुलीं

ओवैसी के इस बयान के बाद बिहार की राजनीति में कई संभावनाएँ खुल गई हैं। क्या नीतीश कुमार उनकी शर्तें मानेंगे? क्या सीमांचल को वह प्राथमिकता मिलेगी, जिसकी मांग वर्षों से होती रही है? या फिर यह मुद्दा सरकार और AIMIM के बीच केवल राजनीतिक सौदेबाजी तक सीमित रह जाएगा? फिलहाल हालात यही बताते हैं कि ओवैसी ने अपना राजनीतिक पत्ता फेंक दिया है और अब गेंद नीतीश सरकार के पाले में है। आने वाले दिनों में दोनों पक्षों की रणनीतियाँ तय करेंगी कि यह गठजोड़ बनेगा या बिहार की राजनीति में एक और सस्पेंस भरा मोड़ देखने को मिलेगा।

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