बिहार चुनाव परिणाम जिस रात पूरे प्रदेश को उत्सुकता, जश्न और राजनीतिक सरगर्मी से भर रहे थे, उसी रात एक दिल दहला देने वाली घटना ने माहौल को अचानक गमगीन कर दिया। जन सुराज पार्टी के एक उम्मीदवार की मौत ने पूरे क्षेत्र को सदमे में डाल दिया। जन सुराज उम्मीदवार का अचानक निधन की यह खबर इतनी अचानक और अप्रत्याशित थी कि पार्टी कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि आम जनता भी अवाक रह गई।
उम्मीदवार देर शाम तक वोटों की गिनती के रुझान पर नजर बनाए हुए थे। परिवार के अनुसार, परिणाम आते-आते उनके चेहरे पर तनाव झलकने लगा। रात करीब 11 बजे अचानक उन्हें सीने में तेज दर्द उठा। परिजन और कार्यकर्ता तुरंत उन्हें नजदीकी अस्पताल ले जाने लगे, लेकिन रास्ते में ही उनकी सांसें थम गईं। डॉक्टरों ने पहुंचते ही उन्हें मृत घोषित कर दिया।
चुनावी नतीजों वाली रात वैसे ही तनाव, उम्मीद और दबाव से भरी होती है, लेकिन यह घटना किसी को भी अचंभित कर देने वाली थी। अस्पताल के बाहर रोते-बिलखते लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। कई लोग कह रहे थे कि “हमने कभी सोचा भी नहीं था कि नतीजों वाली रात इतनी भारी पड़ेगी।”
तनाव या पहले से मौजूद बीमारी?
चुनाव से जुड़े लोग जानते हैं कि उम्मीदवारों पर मानसिक दबाव कितना बढ़ जाता है। कई दिन की भागदौड़, राजनीतिक रणनीतियां, मुकाबले का तनाव और नतीजों को लेकर बनी अनिश्चितता—सब मिलकर शरीर पर भारी असर डालते हैं। परिवार का कहना है कि उम्मीदवार पहले से किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित नहीं थे। वे नियमित रूप से सुबह की सैर करते थे, भोजन पर ध्यान देते थे और फिटनेस को लेकर सजग रहते थे। अचानक आया सीने का दर्द सभी को चौंका गया।
जब परिवार वाले उन्हें अस्पताल ले जा रहे थे, रास्ते में उनकी हालत पल-पल बिगड़ती जा रही थी। एक कार्यकर्ता के मुताबिक, “हमने उन्हें संभालने की पूरी कोशिश की… लेकिन कुछ ही मिनटों में उन्होंने बात करना बंद कर दिया… फिर उनकी सांसों की रफ्तार भी धीमी पड़ गई।”
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उम्मीदवार लंबे समय से चुनावी तनाव में थे, रात-रात जाग रहे थे। लेकिन परिवार इस दावे को खारिज करता है। उनका कहना है, “वे मानसिक रूप से बहुत मजबूत थे… उन्हें अंदाजा था कि राजनीति में जीत-हार दोनों को स्वीकार करना पड़ता है।” हार्ट अटैक के अचानक आने के पीछे जो भी कारण हों, यह घटना एक कटु सच्चाई सामने रखती है चुनावी संघर्ष सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि शारीरिक और भावनात्मक थकावट की भी लड़ाई है।
पार्टी में शोक की लहर—नतीजों की रात जश्न की जगह छा गया सन्नाटा
जन सुराज पार्टी के ऑफिस में चुनाव नतीजों को देखने के लिए कार्यकर्ता जुटे थे। टीवी स्क्रीन पर रुझान बदल रहे थे, कहीं खुशी थी, कहीं निराशा। लेकिन रात के करीब एक बजे जब उम्मीदवार की मौत की जानकारी वहां पहुंची, पूरा माहौल सन्नाटे में बदल गया। पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों ने इसे “जन सुराज के लिए अपूरणीय क्षति” बताया। कई वरिष्ठ नेताओं ने तुरंत अस्पताल पहुंचकर परिवार को सांत्वना दी।
चुनाव में उतरने वाले अधिकांश उम्मीदवारों के लिए यह सिर्फ एक राजनीतिक दौड़ नहीं, बल्कि भावनात्मक यात्रा भी होती है। महीनों की मेहनत, लोगों का समर्थन, उम्मीदों की लंबी रेखा—सब कुछ दांव पर होता है।
उम्मीदवार के निधन की खबर रातोंरात पूरे क्षेत्र में फैल गई। सुबह होते-होते सैकड़ों लोग उनके घर पहुंचने लगे। गांव में मातम पसरा हुआ था। बुजुर्ग रोते हुए कह रहे थे कि “हमने इतना अच्छा इंसान खो दिया… चुनाव तो हर बार होता रहेगा, लेकिन ऐसे लोग फिर नहीं मिलते।”
पुलिस ने औपचारिक प्रक्रिया पूरी करते हुए शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा। पार्टी ने घोषणा की कि उम्मीदवार के परिवार को हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
कई राजनीतिक पार्टियों ने भी इस घटना पर दुख व्यक्त किया। बिहार की राजनीति में ऐसी घटनाएं दुर्लभ होती हैं, और जब होती हैं, तो यह मानवीय संवेदनाओं के महत्व को याद दिलाती हैं—कि चुनावों की चमक के पीछे इंसानों की जिंदगी और भावनाएं भी होती हैं।
