बिहार विधानसभा चुनाव के बाद सोशल मीडिया पर एक तस्वीर तेजी से फैलने लगी, जिसने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। तस्वीर में बहुजन समाज पार्टी के नवनिर्वाचित विधायक सतीश कुरार उर्फ पिंटू यादव मायावती से मुलाकात करते दिख रहे हैं। लेकिन इस तस्वीर को लेकर दावा किया गया कि विधायक ‘घुटने टेककर’ उनसे मिल रहे थे। देखते ही देखते यह फोटो ऐसी चर्चा का विषय बन गई मानो किसी बड़े राजनीतिक संदेश का संकेत दे रही हो।
वायरल पोस्ट्स ने इसे समर्पण, भक्ति और राजनीतिक निष्ठा की अलग-अलग परिभाषाओं से जोड़ दिया। लेकिन इसी बीच सवाल यह भी उठने लगा कि आखिर तस्वीर में दिखाई देने वाला वह पल किस संदर्भ में था। क्या यह राजनीति का रूप था या एक व्यक्तिगत भाव? यही वह सस्पेंस था जिसने इस तस्वीर को अचानक चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया।
विधायक का बयान,‘यह घुटना टेकना नहीं, सम्मान का तरीका था’
तस्वीर पर हो रही तमाम अटकलों के बीच अब खुद विधायक सतीश कुरार सामने आए और उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि तस्वीर को गलत अर्थ दिया गया है। उन्होंने बताया कि मायावती उनसे वरिष्ठ हैं, उम्र में भी बड़ी हैं और वे उन्हें मां का स्थान देते हैं। ऐसे में उनके चरण स्पर्श करना उनके संस्कार का हिस्सा है, न कि राजनीतिक दिखावा।
उन्होंने कहा— “मैंने सिर्फ प्रणाम किया था। इसे घुटना टेकने जैसा दिखाना गलत है। यह मेरे आदर और संस्कार का प्रतीक है। जो लोग बिना बात इसे विवाद बना रहे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि माता-तुल्य व्यक्ति को दंडवत करना कोई अपराध नहीं।”
सतीश कुरार के अनुसार, मुलाकात के दौरान यह एक स्वाभाविक पल था जिसे अलग तरीके से पेश कर दिया गया। उन्होंने कहा कि जीत के बाद आशीर्वाद लेने जाना हर कार्यकर्ता का दायित्व होता है और उन्होंने भी वही किया।
समर्थक बोले सम्मान, विरोधियों ने बताया राजनीति
तस्वीर वायरल होते ही सोशल मीडिया पर मानो दो खेमे बन गए। एक वर्ग ने कहा कि किसी नेता का इस तरह सम्मान करना आज के समय में दुर्लभ है और यह पार्टी में अनुशासन का प्रतीक है। जबकि दूसरी तरफ विरोधी दलों ने इसे चापलूसी की मिसाल बताते हुए तंज कसा।
कुछ लोगों ने दावा किया कि बसपा में नेतृत्व के प्रति अत्यधिक समर्पण का दबाव होता है, जबकि कई समर्थकों ने इस आरोप को हास्यास्पद बताया। उनका कहना था कि तस्वीर सिर्फ एक क्षण का दृश्य है जिसे गलत तरीके से तोड़ा-मरोड़ा गया।
हालाँकि विधायक की सफाई ने स्थिति को काफी हद तक स्पष्ट कर दिया। उनका बयान आने के बाद कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने माना कि तस्वीर को बिना संदर्भ के वायरल किया गया और इससे अनावश्यक विवाद पैदा हुआ।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव के समय या उसके बाद, सोशल मीडिया में अक्सर ऐसी तस्वीरें गलत दिशा में ट्रेंड करने लगती हैं, जबकि वास्तविकता इससे बहुत अलग होती है। इस मामले में भी वही हुआ—एक छोटे से पल ने बड़ी कहानी का रूप ले लिया।
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