महाराष्ट्र की महायुति सरकार में एक बार फिर अंदरूनी खटपट की सुगबुगाहट तेज हो गई है। अजित पवार गुट के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री छगन भुजबल ने गोंदिया जिले में 15 अगस्त को होने वाले ध्वजारोहण कार्यक्रम में हिस्सा लेने से साफ इंकार कर दिया। सूत्रों के मुताबिक, इस कार्यक्रम में उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था, लेकिन अंतिम समय में उन्होंने अपनी उपस्थिति रद्द कर दी। राजनीतिक हलकों में इसे उनकी नाराजगी का संकेत माना जा रहा है। हालांकि, भुजबल ने सार्वजनिक रूप से इस पर कोई सीधा बयान नहीं दिया, जिससे अटकलों का बाजार और गर्म हो गया है।
अंदरूनी राजनीति का असर?
भुजबल के इस फैसले को महायुति सरकार में चल रही खींचतान से जोड़कर देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि विभागीय अधिकारों और निर्णयों में उनके सुझावों को नज़रअंदाज़ किए जाने से वे असंतुष्ट हैं। अजित पवार के साथ उनकी नजदीकी के बावजूद, हाल के दिनों में कुछ प्रशासनिक फैसलों में उन्हें दरकिनार किया गया है। इसी वजह से यह माना जा रहा है कि गोंदिया का कार्यक्रम छोड़ना सिर्फ एक औपचारिक निर्णय नहीं, बल्कि सत्ता में असंतोष का संकेत है। वहीं, बीजेपी और शिंदे गुट के नेताओं ने इस मामले को हल्का बताते हुए इसे “व्यक्तिगत कारण” करार दिया है।
राजनीतिक समीकरणों पर असर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भुजबल का यह कदम आने वाले महीनों में महायुति के अंदर नए समीकरण पैदा कर सकता है। गोंदिया में उनका कार्यक्रम रद्द होना एक छोटे प्रशासनिक मुद्दे की तरह दिख सकता है, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसे संकेत अक्सर बड़े बदलाव की भूमिका तैयार करते हैं। खासकर तब, जब विधानसभा चुनाव करीब हों और सत्ता पक्ष में स्थिरता का संदेश देना अहम हो। फिलहाल, महायुति की ओर से इस मुद्दे को शांत करने की कोशिश जारी है, लेकिन भुजबल की चुप्पी ने सस्पेंस को और गहरा कर दिया है।
