Friday, December 5, 2025
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एक फैक्ट्री से शुरू हुआ था दिवाली बोनस का ‘खजाना’… जिसने बदल दी करोड़ों कर्मचारियों की किस्मत!

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भारत में दिवाली बोनस की परंपरा की जड़ें काफी पुरानी हैं। इसकी शुरुआत 1930 के दशक में पश्चिमी भारत में हुई थी। उस वक्त Tata Group के अंतर्गत आने वाली Tata Textile Mills ने अपने कर्मचारियों को दिवाली से ठीक पहले विशेष बोनस देने की घोषणा की थी। उस दौर में कर्मचारियों को यह ‘अतिरिक्त रकम’ एक उपहार के तौर पर मिली थी, न कि कानूनी हक के रूप में। लेकिन इस पहल का असर इतना गहरा था कि धीरे-धीरे अन्य कंपनियों और फैक्ट्रियों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया।

उद्योग जगत में इसे कर्मचारियों के मनोबल और उत्पादकता से जोड़कर देखा गया। जो मिलें बोनस देती थीं, वहां कामगार ज्यादा संतुष्ट और वफादार बने रहते थे। इसी वजह से दिवाली बोनस धीरे-धीरे एक परंपरा में बदलने लगा — ऐसा जो केवल त्योहार की खुशी नहीं बल्कि कंपनी और कर्मचारी के बीच भरोसे का प्रतीक बन गया।

जब सरकार ने बोनस को ‘हक’ बनाया

स्वतंत्रता के बाद जैसे-जैसे औद्योगिक ढांचा मजबूत हुआ, वैसे-वैसे कामगारों की मांगें भी बढ़ीं। 1960 के दशक में कई जगहों पर बोनस को लेकर विवाद और हड़तालें हुईं। इसी बीच सरकार ने बोनस को लेकर एक ठोस कदम उठाया। 1965 में Government of India ने The Payment of Bonus Act, 1965 पारित किया। इस कानून ने बोनस को कर्मचारियों का कानूनी अधिकार बना दिया।

इस कानून के तहत हर योग्य कर्मचारी को न्यूनतम बोनस की गारंटी दी गई — जिससे त्योहारों पर मिलने वाला यह तोहफा केवल कुछ चुनिंदा कंपनियों तक सीमित न रह जाए, बल्कि हर मेहनतकश को उसका हिस्सा मिले। खास बात यह रही कि यह अधिनियम केवल दिवाली तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सालाना बोनस को एक तय ढांचे में बांध दिया गया। लेकिन दिवाली का त्योहार इसकी सबसे बड़ी पहचान बना रहा।

कंपनियों के लिए रणनीति, कर्मचारियों के लिए खुशियां

आज भारत में दिवाली बोनस केवल एक कानूनी व्यवस्था नहीं बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक परंपरा बन चुकी है। छोटे व्यापार से लेकर बड़े कॉर्पोरेट तक — सभी इस मौके पर कर्मचारियों को बोनस देते हैं। इससे न केवल कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है, बल्कि बाजार में मांग और खर्च भी बढ़ता है। आर्थिक दृष्टि से यह त्योहार रिटेल, जॉब सेक्टर और जीडीपी पर भी सकारात्मक असर डालता है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि दिवाली बोनस ने न केवल कामगार वर्ग की आर्थिक स्थिति को बेहतर किया है, बल्कि कंपनी और कर्मचारियों के बीच संबंधों को भी मजबूत बनाया है। यही वजह है कि जिस ‘तोहफे’ की शुरुआत एक फैक्ट्री ने की थी, वह आज देश की सबसे बड़ी ‘त्योहारी परंपराओं’ में शामिल है।

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