Friday, December 5, 2025
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2025 में कब है अहोई अष्टमी? जानें व्रत की तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व

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अहोई अष्टमी व्रत 2025 में सोमवार, 13 अक्टूबर को रखा जाएगा। यह व्रत हर साल दिवाली से आठ दिन पहले आता है और इसे कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन माताएं संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ व्रत करती हैं। पूरे दिन निर्जला उपवास रखा जाता है और शाम को तारों के दर्शन के बाद अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। इस वर्ष यह व्रत विशेष संयोग लेकर आया है — शिव योग, सिद्ध योग, परिघ योग और रवि योग एक साथ बन रहे हैं, जो इसे और भी फलदायक बनाते हैं।

इस दिन अहोई माता, जो कि देवी पार्वती का ही एक रूप मानी जाती हैं, की पूजा की जाती है। मान्यता है कि अहोई माता संतान की रक्षा करती हैं और उनके जीवन में आने वाले कष्टों को दूर करती हैं। इस बार पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05:53 से 07:08 तक है, जबकि तारों को देखने का समय शाम 06:17 तक रहेगा।

व्रत की कथा: एक श्राप जो बन गया संतान रक्षा का पर्व

अहोई अष्टमी व्रत के पीछे एक प्राचीन और रहस्यमयी कथा है। कहा जाता है कि एक महिला जंगल में मिट्टी खोद रही थी, तभी अनजाने में उसने एक सेही (स्याहू) के बच्चे को मार डाला। दुखी और क्रोधित सेही ने महिला को संतान वियोग का श्राप दे दिया, जिससे उसके सभी बच्चे एक-एक करके मरने लगे। व्याकुल महिला ने तब अहोई माता की कठोर आराधना की और उनसे क्षमा मांगी। माता प्रसन्न हुईं और उसे उसका पुत्र पुनः जीवित मिला। तभी से ये व्रत माताएं अपने बच्चों की सलामती के लिए रखने लगीं।

यह कथा ना केवल एक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि पश्चाताप और सच्ची प्रार्थना से हर संकट टाला जा सकता है। आज भी यह पर्व मातृत्व के त्याग और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

क्यों रखा जाता है अहोई अष्टमी व्रत?

अहोई अष्टमी केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि मां के अंतर्मन की आस्था और प्रेम का पर्व है। यह व्रत हर साल उन माताओं द्वारा रखा जाता है, जो अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और जीवन में सफलता की कामना करती हैं। इस दिन निर्जला व्रत रखकर, पूजा करके और तारों को अर्घ्य देकर, माताएं ईश्वर से अपने बच्चों के सुखद भविष्य की प्रार्थना करती हैं।

अहोई अष्टमी का व्रत इस बात का प्रतीक है कि मां अपनी संतान के लिए कठिन से कठिन तपस्या करने को भी तैयार होती है। यही कारण है कि यह पर्व समय के साथ धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से और भी मजबूत होता गया है।

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