Pitru Paksha 2025: सनातन धर्म में पितृ पक्ष को बेहद पवित्र माना गया है। हर साल भाद्रपद अमावस्या से लेकर अश्विन अमावस्या तक का यह समय पूर्वजों को समर्पित होता है। मान्यता है कि इन दिनों पितर धरती पर आते हैं और अपनी संतानों से तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध की अपेक्षा रखते हैं। लेकिन अक्सर लोगों के मन में एक सवाल बना रहता है—अगर कोई श्राद्ध नहीं करता तो क्या पितर नाराज़ होकर श्राप दे देते हैं? यह प्रश्न सदियों से समाज को उलझाए हुए है। शास्त्रों और पुराणों में इसका उत्तर बेहद गहराई से मिलता है, जो पितृ पक्ष शुरू होने से पहले हर किसी को जानना चाहिए।
शास्त्रों में श्राद्ध का रहस्य और पितृ दोष का डर
गरुड़ पुराण, महाभारत और विष्णु धर्मसूत्र जैसे धार्मिक ग्रंथों में श्राद्ध का महत्व विस्तार से बताया गया है। इन ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि पूर्वजों के प्रति आभार और सम्मान प्रकट करने की विधि है। शास्त्र मानते हैं कि पितरों की आत्मा तब प्रसन्न होती है जब उनकी संतति श्रद्धापूर्वक तर्पण करती है। यदि ऐसा नहीं किया जाए तो वे असंतुष्ट रह जाते हैं। हालांकि ग्रंथों में यह कहीं स्पष्ट नहीं कहा गया कि पितर सीधे श्राप देते हैं, लेकिन उनकी नाराज़गी से परिवार में पितृ दोष उत्पन्न हो सकता है। यह दोष व्यक्ति के जीवन में कई तरह की बाधाएं पैदा करता है—जैसे संतान सुख में कमी, आर्थिक संकट, दांपत्य जीवन में तनाव और अचानक से जीवन में आने वाले विघ्न।
उपायों से पितरों को मिल सकती है तृप्ति
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति परिस्थितिवश श्राद्ध नहीं कर पाए तो उसे अन्य उपायों से पितरों को संतुष्ट करना चाहिए। जैसे—कुशा और तिल से तर्पण करना, गरीबों को भोजन कराना, ब्राह्मणों को दान देना और गौ-सेवा करना। यह भी कहा गया है कि सच्चे मन से किया गया कोई भी दान और पुण्यकर्म पितरों को तृप्त कर देता है। अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि पितर श्राप नहीं देते, बल्कि उनकी नाराज़गी असंतोष के रूप में प्रकट होती है और इसे दूर करने का तरीका है—श्रद्धा, तर्पण और सेवा। पितृ पक्ष 2025 शुरू होने से पहले यह जान लेना बेहद ज़रूरी है ताकि पूर्वज प्रसन्न रहें और परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे।
(Disclaimer: यहां पर प्राप्त जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। UP Varta News इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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