रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नई दिल्ली यात्रा के बीच अमेरिका ने अपनी नई नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी (NSS) जारी कर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। यह दस्तावेज़ ट्रंप प्रशासन की उस भविष्य की विदेश नीति की झलक देता है, जिसमें भारत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण दिखाई देती है। 33 पन्नों के इस डॉक्यूमेंट में अमेरिकी सुरक्षा हितों, वैश्विक रणनीतिक संतुलन और साझेदारियों को लेकर कई बड़े संकेत दिए गए हैं। खास बात यह है कि रणनीति में भारत को एशिया में एक प्रमुख शक्ति के रूप में देखते हुए उसके साथ व्यापक सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया है।
दस्तावेज़ के समय ने भी दुनियाभर में राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है, क्योंकि पुतिन का भारत दौरा पहले से ही अमेरिका-रूस-भारत त्रिकोणीय संबंधों को चर्चा के केंद्र में ला चुका है।
यूरोपीय देशों पर सख्त संदेश
नई रणनीति में ट्रंप प्रशासन ने यूरोपीय देशों पर तीखा हमला बोला है। डॉक्यूमेंट में साफ तौर पर कहा गया है कि कई यूरोपीय देश लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर रहे हैं और यूक्रेन में शांति बहाली के प्रयासों में बाधा बन रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने दावा किया कि यूरोप की नीतियों के कारण यूक्रेन युद्ध लंबा खिंच रहा है, जबकि अमेरिका लगातार समाधान की ओर कदम बढ़ा रहा है।
इसके साथ ही अमेरिका ने यह भी स्पष्ट किया कि आने वाले समय में वह ‘बर्डन-शिफ्टिंग’ की रणनीति अपनाएगा। इसका मतलब है कि अब यूरोप को अपनी सुरक्षा जिम्मेदारियों का बड़ा हिस्सा खुद निभाना होगा। अमेरिका अपनी सैन्य तैनाती और संसाधनों को उन क्षेत्रों की ओर मोड़ेगा, जो उसके राष्ट्रीय हितों के लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं। यह नीति संकेत देती है कि अमेरिका अब पुराने ढर्रे से हटकर यूरोप पर निर्भरता कम करेगा और नई वैश्विक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करेगा।
भारत–जापान के साथ बढ़ेगा सहयोग
NSS के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों में से एक है हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर अमेरिका की नई सोच। रणनीति में चीन को अमेरिका की सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती बताया गया है। डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि वाशिंगटन चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को पूरी तरह से संतुलित करेगा और पारस्परिकता तथा निष्पक्षता को प्राथमिकता देगा।
इसी क्रम में अमेरिका ने यह भी स्पष्ट किया है कि साउथ चाइना सी और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में वह अकेले चीन का मुकाबला नहीं करेगा। इसके बजाय वह भारत, जापान और अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग बढ़ाएगा। इससे यह संकेत मिलता है कि आने वाले वर्षों में भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी और मजबूत होगी, चाहे वह सामरिक क्षेत्र हो, सेमीकंडक्टर या रक्षा उत्पादन। यह भी कहा गया है कि क्षेत्र में ‘वॉर प्रिवेंशन’ यानी युद्ध रोकने वाले उपायों पर अधिक ध्यान दिया जाएगा, जिससे एशिया में स्थिरता बनी रहे।
रूस को लेकर बदला अमेरिकी स्वर
नई रणनीति का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अमेरिका ने रूस के साथ अपने रुख में कुछ लचीलापन दिखाया है। पिछले कई वर्षों से अमेरिका और रूस के बीच तनावपूर्ण संबंध रहे हैं, लेकिन इस रणनीति में पहली बार एक प्रकार की ‘स्ट्रैटेजिक स्टेबिलिटी’—यानी रणनीतिक संतुलन—बहाल करने की बात कही गई है।
डॉक्यूमेंट के मुताबिक अमेरिका को रूस के साथ ऐसे रास्ते तलाशने होंगे, जिनसे वैश्विक स्थिरता बनाए रखी जा सके, यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की कोशिश जारी रहे और यूरोप की अर्थव्यवस्थाएँ भी स्थिर हों। इस संकेत को कई विशेषज्ञ पुतिन के भारत दौरे से जोड़कर देख रहे हैं, क्योंकि भारत दोनों महाशक्तियों के बीच एक संतुलनकारी भूमिका निभाता है।
इससे यह भी स्पष्ट होता है कि बदलते वैश्विक समीकरण में अमेरिका यह समझता है कि भारत का कूटनीतिक प्रभाव बढ़ चुका है और भविष्य की किसी भी बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका केंद्रीय होगी।
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