बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण द्वारा सजा-ए-मौत सुनाए जाने के बाद पूरे दक्षिण एशिया में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। इस फैसले के बाद भारत की प्रतिक्रिया का इंतजार किया जा रहा था, क्योंकि दोनों देशों के रिश्ते दशकों से नजदीकी सहयोग पर आधारित रहे हैं। आखिरकार भारत ने अपना पहला आधिकारिक बयान जारी किया, जिसमें उसने कहा कि उसने इस फैसले को “नोट” किया है और स्थिति पर “करीबी नजर” रखी जा रही है।
भारत के इस संतुलित बयान ने राजनीतिक विश्लेषकों को संकेत दे दिया है कि न्यू दिल्ली इस फैसले को सिर्फ एक न्यायिक घटना नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता से जुड़े गहरे मुद्दे के रूप में देख रहा है। भारत की प्रतिक्रिया से यह भी साफ है कि वह बांग्लादेश में वर्तमान राजनीतिक परिवर्तन की गंभीरता को समझ रहा है।
लोकतंत्र और स्थिरता की चिंता: भारत के बयान के पीछे छिपा बड़ा संदेश
भारत ने अपने आधिकारिक बयान में स्पष्ट किया कि वह बांग्लादेश की घटनाओं को “संवेदनशीलता” और “सावधानी” के साथ देख रहा है। शेख हसीना के शासनकाल में भारत और बांग्लादेश के बीच सुरक्षा, व्यापार, सीमा प्रबंधन और आतंकवाद पर बड़ी साझेदारी रही। ऐसे में हसीना की अनुपस्थिति और उनके खिलाफ आए कठोर फैसले ने राजनीतिक संतुलन को झटका दिया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत का यह बयान संकेत देता है कि वह बांग्लादेश में लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थिरता और शांतिपूर्ण वातावरण को प्राथमिकता देता है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत नहीं चाहता कि पड़ोसी देश किसी भी नए राजनीतिक टकराव का मैदान बने, क्योंकि इसका सीधा असर उत्तर-पूर्वी भारत की सुरक्षा और सीमा पार गतिविधियों पर भी पड़ सकता है।
प्रत्यर्पण की मांग और बढ़ती कूटनीतिक गर्मी
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हाल ही में भारत को पत्र लिखकर शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है। सरकार का दावा है कि भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण समझौता मौजूद है, जिसके तहत यह कदम संभव है। हालांकि, भारत ने इस मुद्दे पर अभी कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है।
यह मुद्दा कूटनीतिक गलियारों में गरमाया हुआ है। भारत के सामने चुनौती यह है कि वह हसीना को शरण देकर राजनीतिक विवाद में न उलझे, और न ही उन्हें वापस भेजकर मानवाधिकार सवालों में फंस जाए। यही कारण है कि भारत का बयान बेहद संतुलित और सावधानीपूर्ण है।
यह भी कहा जा रहा है कि दिल्ली स्थिति को “राजनीतिक” नहीं बल्कि “कानूनी और मानवीय” नजरिए से देखने की रणनीति अपना रही है। यह आगे दोनों देशों के संबंधों की दिशा तय कर सकता है।
आने वाले दिनों में क्या होगा? शांति, कूटनीति और अनिश्चितता की तिकड़ी
भारत के बयान के बाद दक्षिण एशियाई कूटनीति एक नए मोड़ पर खड़ी है। बांग्लादेश में शेख हसीना के समर्थक इस फैसले का विरोध कर रहे हैं, जबकि विपक्ष इसे न्याय की जीत बता रहा है। भारत के लिए स्थिति अत्यंत संवेदनशील है — क्योंकि उसे न केवल कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना है, बल्कि क्षेत्रीय शांति का नेतृत्व भी करना है।
विश्लेषकों का मानना है कि भारत आने वाले दिनों में बांग्लादेश की स्थिरता और सुरक्षा स्थिति का मूल्यांकन करेगा और उसके बाद ही कोई बड़ा निर्णय लेगा। फिलहाल भारत का यह बयान साफ करता है कि वह किसी भी ऐसी स्थिति से बचना चाहता है जिससे दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़े। यह भी माना जा रहा है कि भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी बातचीत करेगा, क्योंकि यह मुद्दा अब घरेलू राजनीति से आगे बढ़कर अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंच चुका है।
