6 दिसंबर की 33वीं बरसी पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बाबरी मस्जिद विध्वंस को भारत के इतिहास का “काला दिन” बताते हुए कहा कि यह घटना सिर्फ एक धार्मिक स्थल का गिराया जाना नहीं थी, बल्कि यह भारत के संविधान, कानून और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा प्रहार था। हैदराबाद में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि 1992 में पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी के बावजूद मस्जिद गिराई गई, जबकि देश की सर्वोच्च अदालत को भरोसा दिया गया था कि ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। ओवैसी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस घटना ने पूरे मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ उन सभी भारतीयों को चोट पहुंचाई जो कानून के शासन और समानता को अपनी पहचान मानते हैं। उन्होंने कहा कि इस दिन को भुलाना भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के साथ अन्याय होगा।
प्रधानमंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया — “कौन सा ज़ख्म भर रहा है?”
ओवैसी ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए बयान की आलोचना की, जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा था कि “500 साल पुराने ज़ख्म अब भर रहे हैं।” इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ओवैसी ने कहा कि यदि कोई ज़ख्म था तो वह धार्मिक नहीं, बल्कि संवैधानिक था। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में बाबरी विध्वंस को “कानून के शासन का उल्लंघन” और “एग्रेसिव वायलेंस” माना था। इसलिए यह दावा करना कि ज़ख्म भर गए हैं, उन लाखों लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ है जो आज भी न्याय, समानता और धर्मनिरपेक्षता पर विश्वास करते हैं। ओवैसी ने सवाल किया कि जब अदालत ने विध्वंस को गलत माना था, तो फिर इतिहास को नए शब्दों में क्यों लिखा जा रहा है? उनके अनुसार, देश का असली ज़ख्म उस दिन हुआ जब अदालत के आदेश और कानून की अनदेखी की गई।
ओवैसी का सवाल — “अगर कोई दोषी नहीं है, तो मस्जिद किसने गिराई?”
अपने भाषण में ओवैसी ने 1992 के बाद चली कानूनी प्रक्रिया का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि जांच और अदालतों ने कई आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन देश आज तक यह नहीं जान पाया कि आखिर बाबरी मस्जिद को गिराने की जिम्मेदारी किसकी थी। उन्होंने व्यंग्य में कहा कि “अगर कोई दोषी नहीं है, तो मस्जिद खुद से गिर गई थी क्या?” ओवैसी ने इस मुद्दे को भारत की न्याय व्यवस्था से जुड़े गंभीर सवालों के रूप में रखा और कहा कि एक ऐतिहासिक ढांचा गिरा, अदालत ने उसे गलत बताया, मगर किसी को दोषी नहीं ठहराया गया — यह लोकतंत्र के लिए बेहद चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि आज के समय में जब कानून और शासन के सिद्धांतों पर बहस तेज है, तब इस घटना से जुड़े सवालों को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
धर्मनिरपेक्षता और समान अधिकारों की याद दिलाई
ओवैसी ने अपने भाषण में यह भी कहा कि भारत की ताकत उसकी विविधता और धर्मनिरपेक्षता में है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि देश का संविधान किसी एक धर्म को राष्ट्रधर्म नहीं बनाता और न ही किसी समुदाय को दूसरे पर श्रेष्ठता देता है। ओवैसी ने यह दावा किया कि 6 दिसंबर 1992 जैसे दिन हमें याद कराते हैं कि देश को आगे बढ़ाना है तो सभी को बराबर हक, सुरक्षित माहौल और न्यायपूर्ण व्यवस्था देनी होगी। उन्होंने उपस्थित लोगों से अपील की कि वे संविधान के मूल्यों को समझें और किसी भी ऐसी विचारधारा का विरोध करें जो धर्म के नाम पर समाज को बांटने का प्रयास करती है। ओवैसी ने कहा कि बाबरी विध्वंस जैसे घटनाक्रम भले ही अतीत का हिस्सा हों, लेकिन इनसे मिलने वाले सबक आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।
