चुनाव आयोग ने सोमवार को Summary Intensive Revision (SIR) के दूसरे चरण की तारीखों का ऐलान करते हुए देशभर के मतदाताओं को बड़ी राहत दी है। इस बार आयोग ने वोटर सूची अपडेट करने की प्रक्रिया को पहले से कहीं अधिक आसान और डिजिटल बना दिया है।
SIR 2.0 की गणना प्रक्रिया 4 नवंबर से शुरू होकर 4 दिसंबर तक चलेगी, जबकि 9 दिसंबर को मसौदा मतदाता सूची और 7 फरवरी को अंतिम सूची जारी की जाएगी।
सबसे अहम सुधार यह है कि अब Enumeration Form भरते वक्त किसी तरह का पहचान पत्र या कागज़ देने की आवश्यकता नहीं होगी। चुनाव आयोग ने बिहार में हुए पहले SIR चरण से सीख लेते हुए इस बार प्रक्रिया में पारदर्शिता और सहजता लाने के लिए बदलाव किए हैं।
अब यदि किसी मतदाता का नाम पुरानी और नई मतदाता सूची, दोनों में मौजूद है, तो उससे कोई दस्तावेज़ नहीं मांगा जाएगा। सिर्फ उन्हीं लोगों से प्रमाण मांगा जाएगा जिनका नाम दोनों सूचियों में नहीं है। यह कदम देशभर में फॉर्म भरने वालों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है।
बिहार मॉडल से ली प्रेरणा, अब डिजिटल मैपिंग से होगी पहचान
चुनाव आयोग ने बताया कि इस बार की प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर लाया गया है। पुराने और नए डेटा के बीच ऑटोमैटिक मैपिंग सिस्टम के ज़रिए 60 से 70 प्रतिशत मतदाताओं की पहचान पहले ही सत्यापित हो चुकी है।
बिहार में हुए पिछले चरण के दौरान पाया गया कि Enumeration Form के समय कागज़ मांगने से न केवल देरी होती थी, बल्कि गलतियों की गुंजाइश भी बढ़ जाती थी।
अब इस डिजिटल मैपिंग सिस्टम से कर्मचारियों को नाम मिलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर किसी का नाम नहीं मिलता है, तभी उसे 12 दस्तावेज़ों की लिस्ट में से एक प्रमाण देना होगा। इस व्यवस्था से प्रक्रिया तेज़, पारदर्शी और त्रुटिरहित बनेगी।
मतदाता अब खुद कर सकेंगे नाम की जांच
चुनाव आयोग ने यह भी बताया है कि अब मतदाता आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर अपना नाम स्वयं चेक कर सकते हैं। इससे न केवल समय बचेगा बल्कि किसी भी ग़लत डिलीट या डुप्लीकेट एंट्री को सुधारने में आसानी होगी।
इसके अलावा, जिन लोगों का नाम दोनों सूचियों में नहीं पाया जाएगा, वे ऑनलाइन आवेदन देकर खुद को रजिस्टर करा सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव मतदाता सूची अपडेट की दिशा में अब तक का सबसे आधुनिक कदम है, जिससे पूरे देश में वोटिंग प्रक्रिया और भी सुव्यवस्थित हो जाएगी।
SIR 2.0 के ज़रिए कागज़ी झंझट खत्म कर डिजिटल विश्वास लाने की कोशिश की गई है। यह न सिर्फ आम मतदाताओं के लिए राहत है बल्कि प्रशासन के लिए भी बड़ी सुविधा है।
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