जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने हाल ही में एक विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ तभी “सुप्रीम” कहा जा सकता है जब वह पूरी तरह से संविधान के निर्देशों पर अमल कर रहा हो। मदनी ने यह भी बताया कि हाल के कुछ सालों में अदालतों के फैसलों को लेकर जनता में यह धारणा बन रही है कि वे कभी-कभी सरकार या हुकूमत के दबाव में काम कर रही हैं।
बाबरी मस्जिद और तीन तलाक के फैसलों पर आलोचना
मौलाना मदनी ने विशेष रूप से बाबरी मस्जिद विवाद और तीन तलाक मामले के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि इन फैसलों के बाद लोगों में यह सोच बढ़ी है कि न्यायपालिका पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं है। उनके अनुसार, इस तरह की परिस्थितियों में न्यायपालिका का सम्मान घटता है और सुप्रीम कोर्ट की साख पर सवाल उठते हैं।
ज्ञानवापी और मथुरा विवाद में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
मदनी ने मौजूदा मामलों जैसे ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा मंदिर विवाद पर भी चिंता जताई। उनका कहना है कि इन मामलों में कोर्ट ने वर्शिप एक्ट को नजरअंदाज करते हुए सुनवाई की है। उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका को निष्पक्ष और संविधान के अनुसार फैसले लेने चाहिए ताकि लोकतंत्र और न्यायिक स्वतंत्रता दोनों बनाए रखी जा सकें।
जुल्म के खिलाफ आवाज और न्याय की अहमियत
मौलाना मदनी ने कहा, “जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा।” उनके इस बयान का उद्देश्य समाज में न्याय और समानता की ओर ध्यान आकर्षित करना है। उन्होंने न्यायपालिका से उम्मीद जताई कि वह संविधान के मूल सिद्धांतों के अनुसार फैसले ले और किसी भी दबाव के सामने नहीं झुके।
