नाशिक में 2027 के सिंहस्थ कुंभ मेले की तैयारियां शुरू होते ही पेड़ों की कटाई को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। नगर निगम ने साधुग्राम बसाने के लिए लगभग 1500 एकड़ क्षेत्र चिह्नित किया है, जिसमें करीब 1800 पेड़ों को काटने की तैयारी की जा रही है। कई इलाकों में पेड़ों पर ग्रीन मार्किंग भी की जा चुकी है, जिसके बाद पर्यावरण प्रेमी और स्थानीय नागरिक विरोध में खुलकर सामने आने लगे हैं। उनका कहना है कि नाशिक का तापमान लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में हजारों पेड़ काटना शहर की सेहत के लिए खतरनाक साबित होगा।
विरोध में उतरे पर्यावरण कार्यकर्ता
पेड़ों की कटाई के प्रस्ताव के बाद प्रकृति प्रेमियों ने मोर्चा खोल दिया है। कई सामाजिक समूहों ने धरना और जागरूकता अभियान शुरू किए हैं। उनका कहना है कि विकल्प तलाशने के बजाय सीधे पेड़ काट देना सही तरीका नहीं है। इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी पकड़ लिया है। कुछ पार्टियों ने नगर निगम पर आरोप लगाया कि बिना ठोस अध्ययन के परियोजना को आगे बढ़ाया जा रहा है।
वहीं, नगर निगम का पक्ष है कि कुंभ के दौरान लाखों श्रद्धालु और साधु-संत नाशिक पहुंचते हैं, ऐसे में उनके लिए साधुग्राम की तैयारी जरूरी है। अधिकारी दावा करते हैं कि कटे हुए पेड़ों की जगह बड़े पैमाने पर नया वृक्षारोपण किया जाएगा।
नितेश राणे का सवाल—‘पेड़ कटने पर शोर, बकरीद पर चुप्पी क्यों?’
विवाद के बीच बीजेपी विधायक नितेश राणे का बयान सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है। उन्होंने सवाल उठाया “तपोवन के पेड़ों की इतनी चिंता है तो बकरीद पर बकरे काटे जाते हैं तब कोई क्यों नहीं बोलता?”
उनका यह बयान जंगल में आग की तरह फैल गया। कुछ लोगों ने इसे दोहरे रवैये पर तंज बताया, तो कई संगठनों ने राणे पर साम्प्रदायिक माहौल भड़काने का आरोप लगाया। सोशल मीडिया पर भी यह मामला खूब छाया रहा, जहां लोग दो गुटों में बंटे नजर आए—एक राणे के पक्ष में और दूसरा बयान के खिलाफ।
विवाद बढ़ा तो राणे ने दी सफाई, आंदोलन अभी थमा नहीं
बयान पर बढ़ते विवाद को देखते हुए नितेश राणे ने सफाई दी कि उनकी टिप्पणी किसी धर्म के खिलाफ नहीं थी। उनका कहना है कि पर्यावरण और करुणा जैसे मुद्दों पर सभी समुदायों को बराबर संवेदनशील होना चाहिए।
हालांकि विरोधी इस तर्क से संतुष्ट नहीं दिखे। नागरिक संगठन और पर्यावरण कार्यकर्ता अभी भी पेड़ों की कटाई रोकने की मांग पर अड़े हैं। नगर निगम को ज्ञापन देने से लेकर जन जागरूकता अभियान तक, लगातार आंदोलन जारी है।
कुल मिलाकर, कुंभ की तैयारियों, पेड़ों की कटाई और नितेश राणे के बयान ने नाशिक में नए राजनीतिक और सामाजिक समीकरण पैदा कर दिए हैं। आने वाले दिनों में यह मुद्दा और भी गरमाने की पूरी संभावना है।
