देशभर से हजारों श्रद्धालु ‘सनातन यात्रा’ में शामिल होने पहुंचे हैं। इस दौरान जहां भक्तों के मुख से जय-जय श्रीराम और हर-हर महादेव के जयकारे गूंजते रहे, वहीं पूरी यात्रा भक्ति, अनुशासन और उत्साह से सराबोर दिखी। यात्रा के बीच जब श्रद्धालुओं को दो वक्त का प्रसाद मिला—गरमागरम पूरी-सब्जी—तो सभी के चेहरों पर मुस्कान खिल उठी। बाद में बागेश्वर धाम सरकार धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने मंच से बताया कि इस प्रसाद व्यवस्था के पीछे अनिरुद्धाचार्य का बड़ा योगदान है।
अपने सहज और विनोदी अंदाज में धीरेन्द्र शास्त्री ने कहा, “दोनों टाइम जो पूरी-सब्जी मिल रही है, ये इन्हीं (अनिरुद्धाचार्य) के कारण संभव हुआ है। हमारे गांव में कहा जाता है – जीको खाओ, ऊको गाओ।” शास्त्री के यह शब्द सुनते ही भक्तों ने जोरदार जयकारे लगाए। मंच के सामने मौजूद हजारों श्रद्धालु “जय श्रीराम” और “बाबा अनिरुद्धाचार्य की जय” के नारों से गूंज उठे। इस पल ने यात्रा स्थल को भक्ति और सौहार्द से भर दिया।
अनिरुद्धाचार्य ने कहा – ‘सेवा का सौभाग्य मिला, आशीर्वाद आपका’
जब मंच से धीरेन्द्र शास्त्री ने उनकी प्रशंसा की, तो अनिरुद्धाचार्य ने भी विनम्रता से कहा, “यह सब सेवा परमात्मा की कृपा से हो रही है। जो कुछ भी किया, वह सब आपके आशीर्वाद और भक्तों की भावना का परिणाम है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि सनातन धर्म की यह यात्रा केवल आस्था नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी दे रही है – एकता, सह-अस्तित्व और सेवा भाव का।
भंडारे के दौरान भक्तों की लंबी कतारें लगीं। जगह-जगह सेवा समितियां प्रसाद वितरण में लगी रहीं। कई श्रद्धालुओं ने कहा कि उन्होंने पहले कभी इतना भव्य और अनुशासित आयोजन नहीं देखा। यात्रा में शामिल हर व्यक्ति को समान रूप से प्रसाद और विश्राम की व्यवस्था मिली। माहौल में सिर्फ भक्ति की गूंज और सेवा का आनंद था।
सनातन यात्रा बनी प्रेरणा
धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की ‘सनातन यात्रा’ अब केवल धार्मिक आयोजन नहीं रही, बल्कि यह समाज में एकता और प्रेम का प्रतीक बन चुकी है। अनिरुद्धाचार्य की ओर से किए गए भोजन प्रबंध ने इस यात्रा को और भी यादगार बना दिया। शास्त्री के अनुसार, “यह यात्रा सनातन धर्म के उत्थान की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, और इसमें जो भी सेवा दे रहा है, वह वास्तव में धर्म की सेवा कर रहा है।”
