Friday, December 5, 2025
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मौलाना महमूद मदनी के बयान पर बढ़ा विवाद, असुरक्षा के सवाल पर बोले—‘आपको मुसलमान बनना पड़ेगा…’

मौलाना महमूद मदनी के हालिया बयानों पर देशभर में उठे विवाद के बाद उन्होंने इंटरव्यू में सफाई दी।

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जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी के एक हालिया बयान ने देशभर में राजनीतिक और सामाजिक हलचल पैदा कर दी है। मदनी ने एक कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर कहा कि “आपको मुसलमान होना पड़ेगा…”—जिसे लेकर कई संगठनों, खासकर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने कड़ा विरोध जताया। देश के अलग-अलग राज्यों में विहिप और उससे जुड़े संगठनों ने मदनी का पुतला फूंका और उन पर धार्मिक उकसावे का आरोप लगाया। सोशल मीडिया पर भी यह बयान बड़े स्तर पर चर्चा का विषय बन गया, जहां समर्थकों और विरोधियों दोनों ने अपनी प्रतिक्रिया दी। इस बढ़ते विवाद के बीच कई राजनीतिक दलों ने भी इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय जाहिर की, जिससे मामला और ज़्यादा गर्म हो गया।

सफाई में क्या बोले मौलाना मदनी

लगातार विरोध और आरोपों के बाद मौलाना महमूद मदनी ने अपने बयान पर सफाई देते हुए इंटरव्यू में कहा कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। उन्होंने कहा कि उन्हें गलत तरीके से ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया जा रहा है जो सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों पर सवाल उठाता है। मदनी ने स्पष्ट किया, “आप मुझ पर यह कहने का आरोप लगा रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट गलत है, जबकि मेरी नीयत और बात कुछ और थी। मैं कोई अकेला व्यक्ति नहीं हूं। मैं एक ऐसे संगठन का हिस्सा हूं जो एक बड़े समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है।”

उन्होंने कहा कि यदि वह अपने समुदाय की चिंताओं और भावनाओं को देश के सामने नहीं रखेंगे, तो यह उनकी जिम्मेदारी से भागने जैसा होगा। मदनी ने ज़ोर देकर कहा कि उनका मकसद समाज को बांटना नहीं, बल्कि संवाद कायम करना है।

असुरक्षा के सवाल पर मदनी का जवाब

असुरक्षा और धार्मिक पहचान के मुद्दे पर पूछे गए सवाल के जवाब में मौलाना मदनी ने कहा कि भारत का संविधान बहुसंख्यकवाद की मानसिकता को बढ़ावा देने का नहीं, बल्कि सभी नागरिकों को सम्मान और सुरक्षा देने का सिद्धांत रखता है। उन्होंने कहा कि देश के हर नागरिक को उसकी धार्मिक पहचान के बावजूद बराबर हक हासिल है। मदनी के अनुसार, समुदाय के लोग अपने अधिकारों और सुरक्षा को लेकर सवाल उठाते हैं, और यह सवाल देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत ही करते हैं, कमजोर नहीं।

उन्होंने यह भी कहा कि उनके बयान को किसी भी तरह की धार्मिक श्रेष्ठता के रूप में देखना गलत है। उनका कहना है कि वह केवल यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि हर नागरिक की पहचान और भावनाएं देश के लोकतांत्रिक मूल्यों का हिस्सा हैं।

विरोध जारी, चर्चा भी तेज

हालांकि मदनी ने अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया, लेकिन विरोध प्रदर्शन जारी हैं। विहिप और कुछ अन्य संगठनों ने कहा है कि वे उनके बयान को लेकर माफी की मांग करेंगे। दूसरी ओर, कई सामाजिक और राजनीतिक संगठन यह कह रहे हैं कि इस मुद्दे को अनावश्यक रूप से बढ़ाया गया।

मदनी के समर्थक दावा कर रहे हैं कि उनका बयान समन्वय और संवाद की दिशा में था, न कि किसी को उकसाने के लिए। यह विवाद आने वाले दिनों में और भी राजनीतिक रंग ले सकता है, क्योंकि धार्मिक बयान अक्सर विभिन्न समूहों के बीच तनाव बढ़ा देते हैं। फिलहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार, संगठन और समाज इस मुद्दे को कैसे आगे बढ़ाते हैं और क्या यह मामला संवाद से हल हो पाता है या फिर लंबे समय तक चर्चा में रहने वाला मुद्दा बनता है।

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