बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले NDA गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर गंभीर मतभेद सामने आ रहे हैं। चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सीटों पर बढ़ती दावेदारी ने पूरे गठबंधन की रणनीति को उलझा कर रख दिया है। जहां एक ओर चिराग अपने लिए “विनिंग सीट्स” की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड), हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) और यहां तक कि बीजेपी भी अपनी मौजूदा मजबूत सीटें छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
इस तनावपूर्ण माहौल के बीच दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के आवास पर NDA घटक दलों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), HAM और RLSP जैसे दलों के नेता शामिल हुए। सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में सीट शेयरिंग को लेकर कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई है। यही वजह है कि गठबंधन के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
चिराग की मांग, लेकिन सहयोगियों की नाराज़गी
एलजेपी (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान ने जिन सीटों की मांग की है, उनमें से कई ऐसी हैं जो या तो जेडीयू, बीजेपी या हम (मांझी की पार्टी) के प्रभाव वाले क्षेत्रों में आती हैं। चिराग का कहना है कि वह उन्हीं सीटों पर दावा कर रहे हैं जहां पर उनकी पार्टी की जीत की संभावना ज्यादा है। मगर अन्य घटक दल इसे अपनी हार की तैयारी मान रहे हैं।
सबसे बड़ा टकराव उन सीटों को लेकर है जिन्हें चिराग ने अपनी लिस्ट में शामिल किया है लेकिन सहयोगी दल छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
बीजेपी की मुश्किलें बढ़ीं
बीजेपी खुद भी चिराग को कुछ सीटें देने को लेकर संशय में है। गोविंदगंज, जो बीजेपी की एक मजबूत सीट मानी जाती है, को चिराग को देने का प्रस्ताव पार्टी के कई नेताओं को मंजूर नहीं है। उनके अनुसार, अगर मजबूत सीटें एलजेपी को दी जाती हैं, तो इसका असर बीजेपी के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ सकता है।
इसी तरह मांझी की पार्टी HAM ने भी अपनी परंपरागत सीट सिकंदरा किसी को देने से इनकार कर दिया है। मांझी का कहना है कि उनकी पार्टी का अस्तित्व और जनाधार कुछ सीमित सीटों पर ही टिका है, ऐसे में वे कोई समझौता नहीं कर सकते।
इस पूरी उठापटक में बीजेपी एक तरह से मध्यस्थ की भूमिका में आ गई है। वह एक ओर गठबंधन को एकजुट रखना चाहती है, वहीं दूसरी ओर चिराग को नाराज़ करने का जोखिम नहीं लेना चाहती। 2020 के विधानसभा चुनावों में चिराग ने ‘एकला चलो’ की नीति अपनाकर जेडीयू को नुकसान पहुंचाया था। अब अगर उन्हें ठीक से एडजस्ट नहीं किया गया, तो एक बार फिर वही स्थिति बन सकती है।
2020 की यादें और 2025 की तैयारी
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ा था। उन्होंने कई सीटों पर जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए थे, जिससे जेडीयू को खासा नुकसान हुआ था। हालांकि एलजेपी को खुद ज्यादा सीटें नहीं मिलीं, लेकिन जेडीयू की कई सीटों पर उनकी पार्टी की वजह से हार हुई।
अब 2025 में बीजेपी नहीं चाहती कि फिर से वैसी स्थिति बने। बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर गठबंधन को स्थिर और मजबूत रखना है, तो सभी दलों की सहमति से सीटों का बंटवारा होना चाहिए। लेकिन यह तभी संभव है जब कोई दल बहुत ज्यादा या बहुत कम मांग न करे।
गठबंधन में दरार या रणनीतिक खिंचाव?
फिलहाल एनडीए में कोई आधिकारिक दरार नहीं पड़ी है, लेकिन जो घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, उनसे ये स्पष्ट है कि सभी घटक दल एक-दूसरे पर भरोसा नहीं कर पा रहे। सबसे ज्यादा अनिश्चितता एलजेपी (रामविलास) को लेकर है। एक ओर बीजेपी उन्हें साथ रखना चाहती है, वहीं जेडीयू और हम उनसे दूरी बना रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग पासवान की राजनीति अब पहले से ज्यादा परिपक्व हो गई है और वह सिर्फ ‘ब्रह्मा जी की बनाई गई पार्टी’ कहने तक सीमित नहीं हैं। अब वह रणनीतिक रूप से मजबूत सीटों पर दावा कर रहे हैं, जिससे उन्हें ज्यादा विधायक मिलें और विधानसभा में उनकी ताकत बढ़े।
