संयुक्त राष्ट्र के हालिया जलवायु सम्मेलन में भारत की उपस्थिति न सिर्फ औपचारिक रही, बल्कि इस बार भारत ने मंच पर जिस स्पष्टता और सख़्ती के साथ अपनी बात रखी, उसने सभी का ध्यान आकर्षित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में वैश्विक समुदाय से स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब “प्लानिंग नहीं, एक्शन की ज़रूरत है”। भारत ने यह भी बताया कि वह न सिर्फ अपनी विकास यात्रा में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दे रहा है, बल्कि विश्व को भी एक सतत विकास का मॉडल दिखा रहा है।
मोदी ने कहा, “भारत ने न सिर्फ 2030 के लक्ष्य समय से पहले ही हासिल किए हैं, बल्कि हम अब 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन एमिशन का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।” इस बयान के साथ भारत ने यह संकेत भी दे दिया कि वह अब वैश्विक जलवायु नीति निर्धारण में पीछे नहीं, बल्कि नेतृत्व की भूमिका में रहेगा।
भारत की पांच प्रमुख पर्यावरणीय घोषणाएं
सम्मेलन में भारत द्वारा पेश की गई पांच नई घोषणाओं ने सबको चौंका दिया। इनमें सबसे प्रमुख थी ,’हरित भारत मिशन’ का वैश्विक विस्तार, जिसके तहत भारत ने 2040 तक देश के 30% भूभाग को वन क्षेत्र में बदलने की योजना प्रस्तुत की।
दूसरी घोषणा थी – सौर ऊर्जा उत्पादन में तीन गुना वृद्धि। भारत ने ऐलान किया कि वह 2035 तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करेगा। तीसरी अहम घोषणा थी ,ग्रीन हाइड्रोजन के वैश्विक केंद्र बनने की योजना।
शून्य प्लास्टिक कचरा नीति, जिसे 2027 तक लागू करने का रोडमैप बताया गया। और पांचवीं – कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की शुरुआत, जिससे विकासशील देशों को लाभ पहुंचेगा। इन घोषणाओं ने सम्मेलन में भारत की छवि को एक गंभीर और प्रतिबद्ध राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया।
विकसित देशों को आईना दिखाता भारत
भारत ने इस मंच का इस्तेमाल केवल अपनी योजनाओं को बताने के लिए नहीं किया, बल्कि वैश्विक असमानताओं की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि “इतिहासिक रूप से जिन्होंने पृथ्वी को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया, उन्हें ही सबसे अधिक योगदान देना होगा।” यह संदेश साफ था – जलवायु परिवर्तन की ज़िम्मेदारी केवल विकासशील देशों पर नहीं थोपी जा सकती। भारत ने जलवायु न्याय (climate justice) की बात करते हुए यह भी कहा कि फंडिंग और तकनीकी सहायता में ईमानदारी और पारदर्शिता की जरूरत है।
भारत के इस दो-टूक रुख से अमेरिका, यूरोप और चीन जैसे बड़े प्रदूषक देशों पर दबाव बढ़ा है कि वे अब अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकते।
वैश्विक मंच पर भारत की साख में इज़ाफा
भारत की यह नई रणनीति न सिर्फ घरेलू राजनीति में प्रभाव डालेगी, बल्कि उसकी अंतर्राष्ट्रीय छवि को भी नए स्तर पर ले जाएगी। भारत अब जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक संकट में ‘फॉलोअर’ नहीं, बल्कि ‘लीडर’ की भूमिका निभा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी भारत की पहल की सराहना की और कहा कि **”भारत जैसे देशों की भागीदारी के बिना जलवायु परिवर्तन से लड़ाई अधूरी है।”**
भारत की इस सक्रिय भूमिका ने वैश्विक दक्षिण (Global South) के देशों को भी प्रेरित किया है, जो वर्षों से इस बात की प्रतीक्षा कर रहे थे कि कोई उनकी आवाज़ भी वैश्विक मंच तक ले जाए।
क्या अब दुनिया बदलेगी अपनी दिशा?
अब बड़ा सवाल यही है कि क्या इस सम्मेलन के बाद दुनिया सचमुच अपने जलवायु लक्ष्यों को लेकर गंभीर होगी? भारत ने अपनी तरफ़ से शुरुआत कर दी है। अब बारी है उन देशों की जिन्होंने दशकों से केवल वादे किए, पर अमल नहीं।
भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में स्थिति और भी भयावह होगी। जलवायु परिवर्तन अब केवल एक पर्यावरणीय नहीं, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संकट भी बन चुका है।
भारत की यह गर्जना शायद एक निर्णायक मोड़ साबित हो – जहां से जलवायु नीति केवल कागज़ों में नहीं, ज़मीन पर भी दिखने लगे।
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